कला, संस्कृति, विज्ञान के आदि पुरुष थे भगवान आदिनाथ : साध्वी डॉ गवेषणाश्री

★ अक्षय तृतीया पर्व पर पन्द्रह तपस्वियों ने तप की, की पूर्णाहुति

 ★ श्रावक समाज ने की तपस्वियों की अभिवन्दना

 चेन्नई : आज का दिन भगवान ऋषभ के तपश्चरण के पुण्यस्मरण का दिन है। चित्त (देने की भावना), वित्त (सुजता आहार-पानी, वस्तु) एवं पात्र (चारित्रिक आत्माएं) इन तीनों के मिलन से ही सुपात्र दान का लाभ मिलता है। आज ही के दिन राजकुमार श्रेयांस, इक्षु रस और भगवान ऋषभदेव के संयोग से दान की महिमा उजागर हुई। उपरोक्त विचार तेरापंथ सभा भवन, ट्रिप्लीकेन में 15 वर्षीतप करने वाले साधकों की अनुमोदना में समायोजित अक्षय तृतीया समारोह में धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी डॉ गवेषणाश्री ने कहें।

◆ भौतिकता को छोड़ कर ही शाश्वत सुख-शांति को पाया जा सकता

 साध्वीश्री ने आगे कहा कि जो कर्मशूर होते है वो ही धर्मशूर होते है। इस अवसरपिणी काल में ऋषभदेव ने कला, संस्कृति, विज्ञान की नींव रखी। असि, मसि, कृषि के साथ 72 कलाओं का प्रशिक्षण दिया। सामाजिक व्यवस्था का प्रादुर्भाव करने के बाद संयम पथ पर गतिशील हुए। आध्यात्म का मार्ग बताया और बताया कि भौतिकता को छोड़ कर ही शाश्वत सुख-शांति को पाया जा सकता है। मोक्ष का आरोहण हो सकता है।


◆ आदिनाथ की वसीयत को करे आत्मसात

 विशेष पाथेय प्रदान करते हुए साध्वी श्री ने कहा कि माता पिता बच्चों के लिए जैसे वसीयत छोड़ जाते है, उसी तरह आदिनाथ प्रभु ने हमें शिक्षा रुपी वसीयत देकर गये कि कर्मों का भुगतान स्वयं को ही करना पड़ेगा। लगभग 12 घड़ी के अन्तराय ने ऋषभदेव को 12 महिने तक के अन्तराय का भुगतान कराया। अतः हमें जीवन में सत् कर्मों का उपार्जन करना चाहिए। तप के मार्ग पर गतिशील साधकों का अभिनन्दन करते हुए साध्वीश्री ने कहा कि जो पतन से बचाये, वह तप होता है। सुन्दर स्वरचित गीतिका 'आई आखा तीज, तपस्वी रा म्हे गुणगान गावां रे' से सभी साधकों को आध्यात्मिक पाथेय दिया। भगवान की तरह कर्मशूर और धर्मशूर बनने और चाह को कम करने का आह्वान किया।

 ◆ तप: स्तुति

 साध्वी श्री मयंकप्रभा ने कहा कि आज के दिन का महत्त्व सभी धर्मों में बताया गया है। जैन धर्म में जहां आज के दिन आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को प्रथम आहार प्राप्त हुआ। वहीं मान्यता है आज के दिन मां गंगा का अवतरण हुआ था, कृष्ण और सुदामा का मिलन हुआ था, परशुराम का जन्म भी आज हुआ था। 

साध्वी श्री दक्षप्रभा ने 'अक्षय तृतीया का त्यौहार, नाभी अगंज की जयकार' एवं साध्वी मैरुप्रभा ने 'बोलों आदिनाथ की जयकार, तपस्वियों की जयकार' सुमधुर गितिका प्रस्तुत करते हुए तपस्वियों का अभिनंदन किया।


◆ अभिनन्दन के स्वर

  इससे पूर्व नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। स्थानीय युवकों, महिलाओं ने अलग अलग गीतिकाओं का संगान किया। प्रखर व्यक्ता श्री गौतमचंद सेठिया ने कहा कि भगवान आदिनाथ के जीवन दर्शन से भावित होकर हमें भी अपने जीवन में ज्ञान के साथ तप का समन्वय करना चाहिए। ट्रिप्लीकेन ट्रस्ट बोर्ड प्रबन्धन्यासी श्री सुरेशचन्द संचेती ने स्वागत स्वर प्रस्तुत किया। सभाध्यक्ष श्री उगमराज सांड, मंत्री अशोक खतंग, माधावरम् ट्रस्ट प्रबन्धन्यासी श्री घीसूलाल बोहरा, तण्डियारपेट ट्रस्ट प्रबन्धन्यासी पुनमचन्द माण्डोत, महिला मण्डल अध्यक्षा लता पारख, श्री वसंतराज मरलेचा, श्री तेजराज पुनमिया, अनेकों तपस्वियों के परिजनों इत्यादि ने अपने श्रद्धा स्वर प्रस्तुत किये। ज्ञानाशाला ज्ञानार्थीओं, प्रशिक्षिकाओं ने सुन्दर नाटिका से ऋषभदेव के जीवन चरित्र को प्रस्तुत किया। सभी तपस्वियों ने प्रत्याख्यान के बाद साध्वीवृन्द को सुपात्र दान बहराया। ट्रस्ट बोर्ड द्वारा सभी तपस्वियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर अभिनन्दन किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए मंत्री विजयराज गेलड़ा ने आभार व्यक्त किया। मंगल पाठ के स्मरण के साथ अभिनन्दन समारोह सम्पन्न हुआ। परिजनों, श्रावक समाज ने तपस्वियों को इक्षुरस से पारणा कराया।


◆ इन तपस्वियों की रही सहभागिता

1) श्रीमती सीताबाई मदनलाल सुराणा 11वा वर्षीतप

2) श्रीमती प्रमिलाबाई चंद्रप्रकाश बंबोली 2nd 

3) श्रीमती ललिताबाई महावीरचंद धोका 3rd 

4) श्रीमती नमीता हसमुख कुमार गेलड़ा 3rd 

5) श्रीमती सायरदेवी शांतिलाल मांडोत 4th 

 6) श्रीमती केसरदेवी बाबुलाल दुगड़  2nd 

7) श्रीमती सुबोध जतन सेठिया  2nd 

8) श्रीमती सुखीदेवी वचराज पितलिया 12th 

9) श्रीमती सौभाग्यवती रोशनलाल चोपड़ा  6th 

10) श्रीमती दाखीबाई अनराज गेलड़ा  13th 

11) श्रीमती विमलाबाई माणकचन्द वेदमुथा 39th 

12) श्रीमती पदमा जयचंद खिवेसरा 5th 

13) श्रीमती पवनबाई माणकचन्द दरला 9th 

14) श्रीमती ताराबाई लालचंद भटेवरा  2nd 

15) श्रीमती सज्जनबाई ज्ञानचंद रांका  16th