मां घर का मांगल्य है, पिता है घर का अस्तित्व- साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञा
★ महिमा जन्मदाता की 'सुनकर श्रोता हुए भावुक, बही अश्रुधार
तेरापंथ भवन, सिकन्दराबाद में रविवारीय विशेष पारिवारिक कार्यशाला- "महिमा जन्मदाता की" के श्रवण हेतु उपस्थित विशाल जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए साध्वी श्री डॉ मंगलप्रज्ञाजी ने कहा- जैन आगम साहित्य में उल्लेख मिलता है- माता-पिता, भर्ता यानि पोषक और धर्माचार्य-इन तीन उपकारकों का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता।
आज प्रासंगिक विषय महिमा जन्मदाता की के संदर्भ में उन्होंने कहा-संसार में प्रथम संबंध माता- पिता के साथ होता है। जन्मदाता- शक्ति का शिवालय, वात्सल्य का देवालय और ममता का महालय होते हैं। एक ऐसा विश्वास है जो संतान के लिए सब कुछ सौंप देते हैं। परिवार रूपी बगीचे को सिंचन और छांव देकर पवित्र संरक्षक की भूमिका निभाते हैं। परिवार रूपी गाड़ी के ड्राइवर बनकर अर्जन जिगर के टुकड़ों को लक्ष्य तक पहुंचाते है और फ्लाईट के पायलट की तरह विकास के शिखर तक ले जाते है। जन्मदाता ऐसे आश्वास है जो अपने स्वप्नों की परवाह किए बिना अपने संतान का हर स्वप्न पूरा करने का प्रयास करते हैं।
साध्वीश्रीजी ने कहा- मां घर का मांगल्य है, तो पिता घर का अस्तित्व है। जिन्होंने आपके हर सपनों में रंग भरा, आपकी हर जीत पर जश्न मनाया और विकास के हर पड़ाव पर ताकत बन कर खड़े रहे।
परिषद ध्यान दें आज स्थितियां कहां ले जा रही है। उनकी उपेक्षा क्यों की जा रही है, यह सत्य है- हर औलाद के पास अच्छे मां-बाप है पर, हर मां-बाप के पास अच्छी औलाद हो चिन्तनीय विषय है। स्थिति यह है कि मां एक टूटी फुटी झोंपड़ी में रहकर भी बेटे के भविष्य निर्माण करती है - पर उस मां के लिए बेटे के बंगले में जगह नहीं है।
साध्वीश्रीजी के एक दर्द भरी, ऐसी घटित कहानी का श्रवण करवाया, परिषद् भावविभोर हो गई। उन्होंने कहा मां बाप तो अपना दायित्व बखूबी निभाते है, पर संतान अपना कर्तव्य भूल जाती है। संतान की सुरक्षा के लिए मां सिंघनी बन जाती है। जिस मां ने बेटे की शादी कर अपना सपना पूरा किया, वह बेटा पत्नी के आते ही, मां की महानता को ठुकरा देता है। यह मात्र कहानी नहीं जैन समाज में होने वाले भयंकर दर्दीले हादसे है। आखिर ऐसा क्यों? जो मां थाली लिए बचपन में आपको खिलाने के लिए पीछे-पीछे घूमती, कितनी रातें जगती, उनके पास दो मिनट बैठकर उनका दु:ख सुख जानना, क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं है!
मां-बाप घर रूपी चमन में चंदन की तरह होते है। आवश्यकता है आप उनके अनुभवों को ग्रहण करे। आशीर्वाद में उठा उनका हाथ आपके भीतर शक्ति का संचार करेगा। ऐसी हालत है- मां-बाप सुबह शाम इंतजार करते है बेटे का, पर बेटे को फुरसत ही नहीं।
◆ कृतज्ञ न बनें, तो क्रूर भी न बनें ◆
उपस्थित उन संतानों का मेरी प्रेरणा है, यह स्थिति सबके साथ होने वाली है, ममता के सागर को भुले नहीं। यदि कृतज्ञ न बनें, तो क्रूर भी न बनें। जिंदगी भर मां बाप आपके लिए ए टी एम कार्ड बने रहे, कम से कम बुढ़ापे में आप आधार कार्ड अवश्य बने। उनकी उपेक्षा न करे। जिन्होंने एक-एक पैसा जोड़कर आपका व्यक्तित्व बनाया, उनको वृद्धाश्रम में कैदकर रखना, क्या शिष्ट जैन समाज के लिए शोभनीय है? जिन्दगी के अंतिम क्षण तक आपके जन्मदाता आपको सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं, उनका सहारा बनने की बजाय, भारभूत मानना मानवीय अपराध है।
आवश्यकता है सम्पूर्ण जैन समाज अपने परिवारों में सद् संस्कारों का बीजारोपण करें। जन्मदाता की महिमा को भुले नहीं, उनकी छत्र- छांव में आनंद का अहसास करें।
साध्वी डॉ चैतन्यप्रभाजी के 'पार्श्व स्तवन' से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। गायक युगल नवीन एवं नवनीत छाजेड़ ने मधुर भावपूर्ण संगान किया। महिला मंडल ने लघु नाटिका का सुन्दर प्रदर्शन किया। साध्वी सुदर्शन प्रभाजी, साध्वी सिद्धियशाजी, साध्वी राजुलप्रभाजी, साध्वी चेतन्यप्रभाजी एवं साध्वी शौर्यप्रभाजी ने - "जन्मदाता की महिमा क्या गाएँ" गीत की संगान किया। साध्वी सुदर्शनप्रभाजी ने मंच संचालन किया।
समाचार सम्प्रेषक : मीनाक्षी जैन
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