भद्रबाहु स्वामी का महान अवदान है "उवसग्गहर स्तोत्र" - साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञा

★ शिवरामपल्ली के राघवेन्द्रा कॉलोनी में 'उवसग्गहर स्तोत्र' का भव्य अनुष्ठान

सिकंदराबाद 26.03.2023 : साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञाजी द्वारा "उवसग्गहर स्तोत्र" का प्रभावक अनुष्ठान करवाया गया।

 इस विशिष्ट अनुष्ठान में संभागी श्रावक समाज को स्तोत्र महिमा बताते हुए साध्वीश्रीजी ने कहा- हम सौभाग्यशाली है, जिन्हें जैन परम्परा विरासत में प्राप्त है। प्रख्यात, प्रभावक मंत्रों की साधना हमारे लिए सुरक्षा कवच है। आचार्य भद्रबाहु ने संघ सुरक्षा के लिए इस महास्तोत्र की रचना की। भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति हेतु रचा गया यह स्तोत्र जन-जन की आस्था का केन्द्र, संकटहारी, शान्ति प्रदायक और विघ्नविनाशक है। इतिहास में भगवान पार्श्वनाथ को पुरुषादानीय कहा गया है। भगवान् पार्श्व जनमानस के लिए प्रणम्य है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध पूर्व में पार्श्व परम्परा में दीक्षित हुए थे। गौरखनाथ परम्परा के नाथ सम्प्रदाय का उदय पार्श्व परम्परा से मानते हैं।

साध्वीश्रीजी ने उपस्थित अनुष्ठान कर्ताओं को "उवसग्गहर स्तोत्र" की साधना करवाई। साधकों ने आत्मिक आनन्द का अनुभव किया। 

साध्वीश्री ने कहा- जैन परम्परा एक समृद्ध परम्परा है। इसमें अनेक शक्तिशाली, सुरक्षा कारक मंत्रों का वैभव है। स्तोत्र रचना से जुड़े इतिहास का साध्वीश्रीजी ने विस्तार से वर्णन करते हुए कहा- श्रावकों के विशेष निवेदन पर, जैनशासन को संकट से उबारने के लिए आचार्य भद्रबाहु ने 'उवसग्गहर स्तोत्र' रचा। आज अनेक व्यक्ति इसकी गहन श्रद्धा के साथ साधना और आराधना करते है। मंत्र के प्रति भक्ति-आस्था शक्ति को शतगुणित कर देती है। विपदा एवं समस्याओं के समाधान के लिए यह मंत्र प्रबल सहायक बनता है। सुरक्षा कवच है। आवश्यकता है भद्रबाहु द्वारा प्रदत्त इस महान अवदान की हम भी त्रियोग के साथ साधना करें।

विशेष जानकारी प्रदान करते हुए साध्वीश्री ने कहा- पौष बदी 10 को इस मंत्र की विशिष्ट साधना बीज मंत्रों के साथ की जाती है, जो 27 दिनों तक चलती है। आत्मरमण के लिए यह शक्तिशाली प्रयोग श्रद्धा के साथ कोई भी कर सकता है। हमारी प्रेरणा है आज से प्रारंभ यह प्रयोग निरन्तर यथा संभव चलता रहे।

साध्वी डॉ. राजुलप्रभाजी, साध्वी डॉ. चैतन्यप्रभाजी एवं साध्वी डॉ शौर्यप्रभाजी ने "भगवान पार्श्व जिन की महिमा" का संगान किया। सम्पूर्ण परिषद् की ओर से इस अपूर्व स्तोत्र साधना करवाने हेतु श्रीमान त्रिलोकचन्दजी सिपानी ने कृतज्ञता के स्वर प्रस्तुत किया। साध्वीश्री के मंगलपाठ श्रावण के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

समाचार साभार : मिनाक्षी जैन

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