असाधारण विशेषताओं की धनी थी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा : मुनिश्री जिनेशकुमार
प्रथम पुण्यतिथि पर गुणानुवाद का कार्यक्रम
उत्तरपाड़ा (कोलकाता) 06.03.2023 : आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेशकुमारजी के सान्निध्य में शासनमाता साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी की प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि का कार्यक्रम माखला स्थित दुगड़ निवास स्थान पर गुणानुवाद के रूप मनाया गया।
मुनिश्री जिनेशकुमारजी ने कहा कि साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी तेरापंथ धर्मसंघ की आठवीं साध्वी प्रमुखा थी। तीन-तीन आचार्यो की सेवा करने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी प्रकृति से सहज, सरल विनीत थी। गुरुइंगित की आराधना में सदैव तत्पर रहती थी। उनकी सहनशीलता, समर्पण, गुरुनिष्ठा, संघभक्ति, अनुशासन, दायित्व बोध व प्रशासनिक क्षमता बेजोड़ थी। उनकी वत्सलता अपने आप में अनुपम थी। तेरापंथ धर्मसंघ में सर्वाधिक लम्बे काल तक साध्वी प्रमुखा पद को सुशोभित करने वाली आप श्री थी। आचार्य श्री महाश्रमणजी ने उनकी विशेषताओं का अंकन करते हुए असाधारण साध्वी प्रमुखा व शासनमाता के रूप में स्वीकार किया। साध्वी प्रमुखा पद के पच्चास वर्ष पूर्ण होने पर आचार्य श्री महाश्रमणजी की सन्निधि में अमृत महोत्सव मनाया गया।
मुनिश्री ने आगे कहा कि साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी नैसर्गिक प्रतिभा की धनी थी। उनके साहित्य में नवीनता थी। उनकी रचनाएं विशिष्ठ थी। आचार्य श्री तुलसी के साहित्य का उन्होंने कुशल संपादन किया। वे आचार्य श्री तुलसी की विशेष कृति थी। दिल्ली में एक साल पूर्व असाध्य बीमार में महाप्रयाण हुआ। शासनमाता ने होली के दिन जहान को अलविदा कहा दिया। परन्तु सतरंगी संस्कारों की सद्प्रेरणा देने वाली प्रमुखाश्रीजी विदेह आज भी मौजूद है।
मुनिश्री परमानंद ने कहा साध्वीप्रमुखा का जीवन समर्पण से भरा हुआ था। वे वात्सल्य की देवी थी। मुनिश्री कुणालकुमार ने गीत प्रस्तुत किया। प्रकाश गिडिया, जुगराज बैद तेरापंथ महिला मंडल की मंत्री सुमन सिंघी ने अपने विचार रखे। संचालन मुनि श्री परमानंद ने किया।
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