एक दूसरे के प्रति रखें सम्मान, वात्सल्य की भावना- साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञा

★ दुर्लभता से प्राप्त मानव जीवन को सार्थक बनाने की दी प्रेरणा

सिकंदराबाद 24.03.2023 : शहर के शिवरामपल्ली में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञाजी ने कहा हम सौभाग्यशाली हैं जिन्हें आनंददायक मानव भव मिला है। जिंदगी के हर पल को सजगता के साथ जिएं। समय को व्यर्थ न करें। ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप की साधना में लयलीन बने रहे। मनुष्य जीवन का विशेष स्टेशन प्राप्त करके भी हम प्रमाद में जी रहे हैं, यह चिंतनीय विषय है। व्यक्ति जितना अनासक्त रहेगा। राग-द्वेष से मुक्त रहने का प्रयास करेगा, उतना ही आनंद प्राप्त कर सकेगा। धर्म समझने वाला व्यक्ति वर्तमान को संवारने का प्रयास करता है। यह सच्चाई है कि मौत अवश्य आएगी। मौत से डरे नहीं, पर जिंदगी को भारभूत न बनाएं। समाज, संगठन, परिवार के भार को बांधे नहीं, हल्केपन के साथ जीवन जिए। अपने सभी दायित्वों का सम्यक् निर्वहन करते हुए आनंदमय और तनाव मुक्त जीवन जिए। दुर्लभता से प्राप्त मानव जीवन को सार्थक बनाएं।

■ परिवार में बनाए रखें प्रेम भाव  

साध्वीश्रीजी ने आगे कहा कि आत्मनिरीक्षण करें की आपके रिश्तो में वैमनस्य के कारण कर्मों का बंधन न हो। धर्मोपासना को जीवन का अंग बनाएं। धर्म का अर्थ ही है- मधुर व्यवहार। परिवार में प्रेम भाव बनाए रखें।

■  जिन्दगी रुपी किताब से गलती वाले पृष्ठ को दे निकाल

इतिहास का उदाहरण देते हुए साध्वीश्रीजी ने कहा राम भरत आदि में कितना प्रेम था। एक दूसरे के प्रति सम्मान की, वात्सल्य की भावना हम सबके लिए प्रेरणा है। जहां अपने रहते हैं, परस्पर दुख-सुख को बांटने का प्रयास करें। रिश्तो में कड़वाहट पैदा नहीं करें। रिश्ते नाजुक कांच की तरह होते है- सावधान रहें, कहीं यह टूट ना जाए। किताब की तरह लगने वाली जिंदगी में गलती हो भी जाए तो, गलती वाले पृष्ठ को निकाल दे। हम भगवान महावीर की इस वाणी को साधना कर आधार बनाएं- आत्मा ही कर्मों को करने वाली है और वही आत्मा कर्मों के बंधन से बचाती है। अतीत का भार न ढोए, वर्तमान में साधना करते हुए शुभ भविष्य का निर्माण करें। रिश्तो में खटास पैदा हो भी जाए तो उसे शीघ्र ही मधुर बनाने का प्रयास करें।

साध्वीश्री ने आगे कहा प्रवचन का उद्देश्य है सभी आत्म निरीक्षण करके आनंद पूर्वक जीवन जीये। हर व्यक्ति ध्यान रखें कर्मों का बंधन न हो, क्षमा की साधना करें।

 प्रवचन से पूर्व साध्वी डॉ शोर्यप्रभाजी ने भगवान महावीर वाणी का रसास्वादन करवाया। साध्वी डा. राजुलप्रभाजी ने जिंदगी को परिभाषित करने वाले मधुर गीत का संगान किया।

समाचार साभार : मिनाक्षी जैन

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