श्रद्धा मजबूत, तो सम्यग दर्शन सुरक्षित : आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर

विकट परिस्थिति में भी श्रद्धा को दृढ़ रखने की दी प्रेरणा

किलपॉक, चेन्नई 29.11.2022 : कभी राजा बोल दे कि आपको अमुक देव के सामने झुकना ही पड़ेगा। उस समय झुकना भी पड़े, तो उस समय व्यक्ति के मन के अंदर तो परमात्मा के प्रति ही श्रद्धा होगी, किंतु राजा के वश होकर झुकता है। वहां उसका सम्यगदर्शन दूषित नहीं होता। ऐसे ही कोई समूह का जोर आ जाए, कभी कोई देव कुपित हो जाए, कभी कोई बलपूर्वक भी हमसे काम कराएं या कभी-कभी हमारे गुरु भगवंत भी हमको आदेश दे देंगे तो हमको कोई प्रकार का दोष नहीं लगता। उपरोक्त विचार श्री नमिनाथ स्थूलभद्र विहार किलपाक में विराजित श्री स्थूलभद्र कृपा प्राप्त आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए कहें।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि सत्वशाली और सत्यवादी व्यक्ति हमेशा सत्य के लिए लड़ता है, वह वास्तविकता को कभी नहीं छोड़ता। फिर सामने उसका अपना परिवार होगा तो भी वह नहीं देखेगा। किंतु सत्य के लिए वास्तविकता के लिए वह हमेशा तैयार रहेगा।

  विकेट परिस्थिति में दृढ़ श्रद्धा तो सम्यक दर्शन सुरक्षित

सम्यग्दर्शन के 67 बोल में छह प्रकार की यतना के बाद 6 प्रकार के आगार की बात आती है - आगार यानी छूट। जीवन के अंदर कभी-कभी विकट परिस्थिति आती है, तब व्यक्ति चाह कर भी जो करना चाहिए वह नहीं कर सकता, तब उसको न चाहकर भी वह कार्य करना पड़ता है। इसी प्रकार शास्त्रों के अंदर भी सम्यगदर्शन की प्राथमिक भूमिका में जो जीव है, जिनका सम्यगदर्शन की प्रारंभिक भूमिका में है, वैसे बाल जीवों के लिए यह आगार की बात है। राजाभीयोग, गणाभीयोग, बलायोग, देवाभीयोग, गुरुआभीयोग और वृत्ति दुर्लभ यह 6 प्रकार के आगार है। सम्यगदर्शनी आत्मा तो विकट से विकट परिस्थिति में भी मजबूत रहती हैं। दृढ़ रहती हैं, सच्चा धर्मी, सत्व शाली होता है। सज्जन आत्मा हाथी के दांत जैसी होती है और दुर्जन आत्मा कछुए जैसी। हाथी के दांत बहुत कीमती है, किंतु तकलीफ के समय में वैसे ही रहते हैं और कछुआ तकलीफ देखकर विकट समय में अपनी गर्दन अंदर कर लेता है अपना शरीर अंदर ले लेता है।

सत्वशाली, सत्यवादी बन सम्यग दर्शन को करें मजबूत

आचार्य श्री ने विशेष पाथेय देते हुए कहा कि सज्जन व्यक्ति तकलीफ में भी दृढ़ रहते हैं और दुर्जन व्यक्ति अपना फायदा लेकर निकल जाते हैं। हम कहां है? जीवन के अंदर अतिचार और अनाचार यह दोनों है। अतिचार का प्रायश्चित है किंतु अनाचार का प्रायश्चित नहीं है। आप मन के अंदर श्रद्धा रखकर किसी के वश में आकर आपको कोई क्रिया करनी भी पड़े, लेकिन मन के अंदर दुख होगा। श्रद्धा मजबूत होगी तो आपका सम्यग दर्शन रहेगा, उसका प्रायश्चित होकर आपकी आत्मा शुद्ध हो जाएगी। किंतु मन के अंदर श्रद्धा नहीं होगी तो मिथ्यात्व और मजबूत होगा। यह अनाचार का कोई प्रायश्चित नहीं होता, वह अपनी आत्मा को भटका देता है। आइए जीवन के अंदर सत्वशाली बने, सत्यवादी बने और सम्यग दर्शन को मजबूत कर आत्मा का कल्याण करे। 
चूलै जैन संघ से न्यालचंद वैद आदि ट्रस्ट मंडल पूज्यश्री को चूलै जैन संघ में पधारने हेतु विनती की। विनती स्वीकार की और अनुकूलतानुसार पधारने का आश्वासन दिया

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