अनशन जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि : मुनि अर्हत् कुमारजी
संथारा साधिका ज्योतिबाई की स्मृति सभा
गांधीनगर, बंगलुरू : मुनि श्री अर्हत् कुमारजी के सान्निध्य में तेरापंथ सभा भवन, गांधीनगर, बंगलूरु में संथारा साधिका ज्योतिबाई की स्मृति सभा आयोजित की गई।
स्मृति सभा में समागत धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए मुनि अर्हत् कुमारजी ने कहा कि जीवन यात्रा के दो पड़ाव है- जन्म और मृत्यु। इन दोनों के बीच का सेतु है जीवन। जीना एक कला है, तो मरना भी एक कला है। अनशन मरने की कला का नाम है। अनशन जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। भगवान महावीर ने श्रावक के क्रमिक विकास के लिए तीन मनोरथ का विधान किया है, इसमें यह तीसरा मनोरथ है- समाधि मरण अर्थात संलेखना। अनशन करने का अर्थ है मृत्यु को ललकारना और यह कोई शूरवीर एवं दृढ़ मनोबल व्यक्ति ही कर सकता है। अनशन वह वायुवान है जो आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाता है और इसी वायुवान की यात्री बनी है ज्योतिबाई। ज्योतिबाई जिन्होंने आत्म मनोबल को तोलते हुए आत्मा और शरीर भिन्न की अनुभूति करने के दृढ़ निश्चय के साथ अनशन को स्वीकार किया और पूर्ण जागरूकता के साथ समता से कण-कण को भावित करते हुए शुद्ध भावो के साथ अपना संकल्प सिद्ध किया। उनकी आत्मा के प्रति यही मंगल कामना वह उत्तरोत्तर आगे बढ़ते हुए अपने परम लक्ष्य को प्राप्त करें।
मुनि श्री भरतकुमारजी ने कहा
ज्योति बाई का करे गुणगान।
त्याग, संयम, साधना मे था ध्यान
रहना सजग मुनि श्री का आव्हान।
था पल-पल सजग अनशन का भान।
मोक्ष सदन के लिए करती शुभ ध्यान।
ज्योति बाई थी सच मे पूणवान,
ज्योति बाई ने आत्मा को बना दिया महान।
मुनि जयदीपकुमारजी ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ सभाध्यक्ष कमलजी दूगड़ एवं महिला मंडल अध्यक्षा स्वर्णमाला पोखरणा ने अपने भाव की अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि 48 दिनों का दीर्घ संलेखना संथारा पूर्ण समभावो से सानंद संपन्न हुआ। परिवार की ओर से गौतम डोसी, राजीमती डोसी, चिन्तन नाहर, प्रेक्षा नाहर एवं वेदांत गोयंका ने अपने भावो की प्रस्तुति दी। पारिवारिक जनो ने सामुहिक गीत का संगान किया। संचालन प्रकाश डोसी ने और गौतम डोसी ने सभी का आभार ज्ञापन किया।
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