सत्य, शिव, सुन्दर की जीवन्त मूरत है माँ : साध्वी अणिमाश्री


¤ 'मातृ पितृ देवो भव' कार्यक्रम का हुआ समायोजन 

 बालोतरा : साध्वीश्री अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन के अमृत-सभागार के सुरम्य परिसर में विशाल जनमेदिनी की उपस्थिति में रविवार को 'मातृ पितृ देवो भव' का भव्य कार्यक्रम समायोजित हुआ।


  'माँ ही मंदिर, माँ ही पूजा, पिता से बढ़‌कर कौन है दूजा' इस विषय पर मार्मिक उद्‌बोधन देते हुए साध्वीश्री अणिमाश्रीजी ने कहा कि जिसकी वाणी में सत्य, आँख में शिव और हाथों में सुन्दर है। सच, सत्य, शिव, सुन्दर की जीवन्त मूरत है माँ। सरवर, तरवर और संतों की तरह बच्चों पर अपना हर सुख लुटा देती है माँ। पृथ्वी की तरह सहनशील है- माँ। उसकी ममता सागर की तरह अथाह है। माँ शब्द बीज की तरह छोटा सा है, मगर उसका कर्तृत्व बरगद की तरह विशाल है। माँ अपने आप में एक सम्पूर्ण शास्त्र है। माँ के ममत्व की एक बूंद के आगे अमृत का क्षीरसमन्दर भी बौना लगता है। चाहे बेटा सारी पृथ्वी का सम्राट ही क्यों न बन जाएं, पर माँ के उपकारों का कर्ज नहीं चुका सकता। उस कर्ज से यत्किंचित हल्का होने के लिए माँ के धर्मध्यान में सहयोगी बने। गुरु-भगवन्तों की सेवा में सहयोग करे। उनको आध्यात्मिक परिवेश में रहने का अवसर दे। लायक संतान बनकर माँ-बाप के उपकारों को कभी मत भूले।



 डॉ. साध्वीश्री सुधाप्रभाजी ने पिता की गरिमा व्याख्यायित करते हुए कहा कि जीवन रूपी नाटक के दो महत्वपूर्ण पार्ट है- माता और पिता। पिता उस शख्स का नाम है- जिन्हें न दिन दिखाई देता है और न रात। उसे तो सिर्फ परिवार के हालात दिखाई देते हैं। पिता नीम के पेड़ की तरह होता है, जिसके पत्ते भले ही कड़‌वे हो, पर छाया हमेशा की ठड़ी ही देता है। अपनी तकदीर को संवारने के लिए खुदा रूपी माँ-बाप की खिदमत करे।


 साध्वीश्री कणिकाश्रीजी ने माँ की ममता को उजागर करने वाली भावपूर्ण कविता प्रस्तुत की। साध्वीश्री समत्वयशाजी ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया।