तप आत्मा, शरीर, मन और बुद्धि को बनाता मंगल : साध्वी डॉ गवेषणाश्री

 माधावरम् : तपोभिनन्दन समारोह में तपस्वियों के साथ धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए साध्वी श्री डॉ गवेषणाश्री जी ने कहा कि तप मंगल है, टॉनिक है, शक्ति है। तप आत्मा, शरीर, मन और बुद्धि चारों को मंगल बनाता है। भगवान महावीर से प्रश्न पूछा गया- तवेणं भंते! जीवे किं जणयइ?- भंते! तप से जीव क्या प्राप्त करता है? भगवान ने कहा- 'तवेणं, वोदाणं जणयइ'- तप से वह व्यवदान को प्राप्त करता है। निर्जरा का महत्वपूर्ण साधन है। पूर्वोर्जित कर्म संचय को क्षीण करने का एक अच्छा माध्यम है। तपस्या साधक का धन है। तप की साधना प्रतिक्रमण आदि आवश्यकों की आराधना में बड़ा निमित्त बनती है।


 साध्वी श्री मयंकप्रभाजी ने कहा कि तप न मैगों है, न फ्रूटी है, यह जीवन की सिक्युरिटी है, न फ्रूट है, न ड्रायफ्रूट- यह ‌मोक्ष का सीधा रूट है। इन्द्रियों का संयम के लिए खाने का संयम आवश्यक है। आयुर्वेद में कहा गया है, स्वस्थ रहना है तो हर सप्ताह में एक लंघन अवश्य करें। साध्वी श्री मेरुप्रभाजी अपने सुमधुर स्वरों के साथ तपस्वी की अनुमोदना में गीतिका की प्रस्तुति दी। साध्वी श्री दक्षप्रभाजी ने कुशलतापूर्वक कार्यक्रम का संचालन किया।

 सुश्री केसर रांका एवं सुश्री लक्ष्या बाफणा ने 11 की तपस्या और सुश्री डिम्पल बाफणा ने 9 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। बाफणा एवं रांका परिवार की बहनो ने गीतिकाएं प्रस्तुत की। तपस्वी अनुमोदना कार्यक्रम का संचालन श्री प्रवीण सुराणा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन श्री सुरेश रांका ने दिया।