पर्युषण विकृति से प्रकृति में जीना सिखाता : साध्वी डॉ गवेषणाश्री
माधावरम् : युगयुधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी श्री डॉ गवेषणाश्रीजी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व पर उसके महत्व को उजागर करते हुए और खाद्य संयम दिवस पर बताते हुए कहा साध्वी ने कहा कि पर्युषण पर्व नहीं, महापर्व है, आत्मशुद्धि का प्रेरक-उत्प्रेरक है। मनुष्य जितना प्रकृति के निकट रहता है, उतना ही पुलकित एवं प्रसन्न रहता है। पर्युषण विकृति से प्रकृति में जीना सिखाता है। विभावों से मुक्त हो स्वभाव में रमण करना इसका उद्देश्य है। पर्युषण सृजन का नया देवता है।
साध्वीश्रीजी ने इस पर्व का पहला दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाते हुए कहा कि पशु पेट भरने के लिए खाता है, मुर्ख स्वाद के लिए, होशियार आरोग्य और शक्ति के लिए एवं संत साधना के लिए खाते है।
साध्वी श्री मयंकप्रभाजी ने कहा कि तीर्थकर तो एक ही दिन यह पर्व मनाते थे, किन्तु आठ कर्म तोडने के लिए, अष्टमंगल हेतु, अहमभक्त के लिए, सिद्धों के अष्टगुणों की प्राप्ति के लिए और अष्टमाता की जागरुकता के लिए हम यह आठ दिन का पर्व मनाते है।
साध्वी श्री दक्षप्रभाजी ने कहा कि भोजन हमारे जीवन की एक अनिवार्यतम अपेक्षा है। शरीर को टिकाए रखने के लिए हर आदमी को भोजन करना होता है। आयुर्वेद में कहा गया है कि हित, मित, भोजन करें। साध्वी श्री मेरुप्रभाजी ने कुशलता पूर्वक कार्यक्रम का संचालन करते हुए सुमधुर गितिका प्रस्तुत की। कार्यक्रम की शुरुआत चेन्नई कन्यामंडल के मंगलाचरण से हुई। माधावरम् ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री घीसुलाल बोहरा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने विचार रखें।
श्री सुरेश रांका ने आगामी कार्यक्रमों की सुचना दी। महापर्व की साधना में लगभग 800 श्रावक- श्रविकाएँ सम्मिलित हुए।
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