शुद्ध भावों से वन्दना करने से होता तीर्थंकर गौत्र का बंधन : मुनि श्री हिमांशुकुमारजी
★ वन्दना से आध्यात्मिक और व्यावहारिक पक्षों के लाभों को किया उजागर
चेन्नई 22.08.2024 : साधना के छोटे छोटे प्रयोग भी उपयोगी बनते हैं, नव निर्माण में सहायक बनते हैं, आत्मोन्नति के साधक बनते हैं। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री हिमांशुकुमारजी ने तेरापंथ सभा भवन, साहुकारपेट में धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए कहें।
मुनिश्री ने कहा कि साधना का एक अंग है- वन्दना। जिनेन्द्र प्रभु, पंच महाव्रतधारी साधुओं को मन, वचन, काया की एकलयता में शुद्ध भावों से वन्दना की जाती हैं, तो अनेकानेक लाभ होते हैं। जैनागम उत्तराध्यन सूत्र में 29वें अध्याय के 11वें श्लोक में भगवान महावीर ने बताया कि सम्यक् भावना से वन्दना करने से-
1. नीच गौत्र कर्म क्षय और उच्च गौत्र का बन्धन होता है।
2. वन्दना से विनम्रता आती है और उससे सभी उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।
3. अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण होता है। योग अनुकूल बन जाते हैं। लोग अनुकूल बनते हैं।
4. अबाधित सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यश, किर्ती बढ़ती है, भाग्य तेजस्वी बनता है।
5. तीर्थंकर गौत्र का बंधन भी हो सकता है।
मुनिश्री ने वन्दना के आध्यात्मिक पक्ष के साथ व्यावहारिक लाभ को उजागर करते हुए बताया कि शुद्ध भावों से वन्दना करने वाला व्यक्ति
6. दुर्गति में नहीं जाता है।
7. नीचे झुक कर वन्दना करने से एड्रिनल ग्रंथि के हारमोंस बैलेंस होते है, उससे गुस्सा शांत हो जाता है।
8. चंचलता कम होती है।
9. रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की ओर होने से न्यूरॉन्स का स्राव बढ़ जाता है उसे बुद्धि का विकास होता है।
10. चेहरे की सुंदरता, ओजस्विता बढ़ती हैं।
वन्दना के आध्यात्मिक और व्यावहारिक परिणामों को बताते हुए मुनिप्रवर ने नियमित सुबह-शाम शुद्ध, पवित्र भावों से सीमंधर स्वामी और गुरुवर को वन्दना करने की पावन प्रेरणा दी। साक्षात् होने पर गुरुदेव, साधु-साध्वीयों के प्रत्यक्ष दर्शन कर वन्दना करने का आह्वान किया।
मुनि श्री हेमंतकुमारजी ने LORD is now Here विषयक पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि हर व्यक्ति सुख को पाना चाहता है और भौतिक जगत, पदार्थ की प्राप्ति में ही सुख का अनुभव करते है। जबकि वास्तविक सुख तो जिनेश्वर द्वारा बताया मार्ग ही है। वर्तमान में जिनेश्वर प्रभु साक्षात् हमारे सामने नहीं है, परन्तु उनकी श्रुत वाणी के रूप में वे अभी भी हमारे बीच में ही है। सम्यक् पुरुषार्थ के साथ जीन वचनों की पालना करने वाला अपने जीवन का रुपांतरण कर सकता है, मुक्ति को पा सकता हैं।
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