सोच समझ कर करे समय का उपयोग : गच्छाधिपति जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी

★ समय की बहुमूल्यता को पहचान, धर्म जागरणा में बिताने की दी प्रेरणा

चेन्नई 02.08.2023 : श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी, चेन्नई में शासनोत्कर्ष वर्षावास में गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म.सा ने उत्तराध्यन सूत्र के चौथे अध्याय के विवेचन में धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए कहा कि सभी को मालूम है कि मुझे जाना है लेकिन कब जाना है किसी को मालूम नहीं है।

हम कब विदा हो जायेंगे, कोई मालूम नहीं अतः धर्म करते समय यह ध्यान रखें कि जो काम कल करना है, उसे आज करले और आज को अभी कर ले। संसार के कार्यों में आज के कार्यों को कल पर छोड़ देना चाहिए। अत: धर्म पहले, संसार बाद में। आत्म कार्य के लिए, अध्यात्म के लिए कभी भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। जैसे किसी को जीवन के मात्र एक ही गाड़ी चाहे वो किमती हो, मिलती है तो उसका वह सावधानी पूर्वक ध्यान रखता है। उसी तरह हमें मनुष्य रुपी जो अमूल्य गाड़ी मिली है, जिसका कोई विकल्प नहीं है, उसका ध्यान हम कितना रख रहे है, चिन्तन करें। अधिकतर हमारा अपना जीवन हम दूसरों को सौप देते हैं। हम स्वयं की सोच, स्वयं के संकल्प या स्वयं के भविष्य के आधार पर जीवन नहीं जीते।

◆ सत्ता, सम्पत्ति, सम्बंध सब छुटने वाले है 

 आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि यह जीवन असंस्कृत है, उसे बढ़ाया, घटाया नहीं जा सकता। यह मनुष्य जन्म अनमोल है। सारे सम्बंध, सारी माया, सारी सम्पत्ति यही धरी रह जायेगी। जिनके कारण हमने क्रोध, मान, माया, लोभ किया, आवेश किया वे सब यही छुट जायेंगे और हम विदा हो जायेंगे। पुण्य से जो भी सत्ता, सम्पत्ति पाई, वह सब यही रह जायेगी, लेकिन उसको पाने के लिए जो 18 पापों का सेवन किया, वह हमारे साथ चलेगा। भगवान महावीर ने बताया था कि जो समय की बहुमूल्यता को, उपयोगिता को, क्षण भंगूरता को जानता है, वही पण्डित है। जिन्दगी में कोई भी खोई चीज वापस प्राप्त कर सकते हैं। पाप कर्म के उदय से गई खोई सम्पत्ति पुण्य के प्रकट होने से पुनः खोई हुई सम्पत्ति, सत्ता वापस पा सकते है, लेकिन एक बार हाथ से जो समय निकल गया, दूबारा हमारी जिन्दगी में वह समय आ नहीं सकता। अतः इस अमूल्य समय में पुरुषार्थ करके आध्यात्मिकता में जीवन को जीकर उन्नत बनाना चाहिए। छोटे से जीवन में 1/3 समय तो नींद में, बाकी का समय व्यर्थ में खो देते है, हमारे स्वयं के लिए समय कितना निकाल पाते है, उस पर विचार करे। जब व्यक्ति भयभीत रहता है, मौत को सामने खड़ा देखता है, वह दूसरे संसारिक सब कार्यों से निर्लिप्त रहता है। एक भी पाप नहीं कर पाता, धर्म में रमण करता है। बदलने के लिए समय नहीं, सम्यग् दृष्टि चाहिए।

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