धर्म व्यापार में बने प्रॉफिट सम्पन्न : गच्छाधिपति जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी


★ श्रवण क्रिया से कला और श्रवण योग तक पहुंचने की बताई महत्ता

चेन्नई 23.07.2023 ; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में धर्मपरिषद् को संबोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने उत्तराध्यन सूत्र के तीसरे अध्याय की गाथा में मनुष्य भव को सुलभ बनाने के चार सूत्रों की विवेचन करते हुए कहा कि मनुष्य जन्म की दुर्लभता से भी दुर्लभ है श्रवण। भगवान महावीर की देशना को सुनना। शरीर के अंगों में दो अंगों का विशेष महत्व है- पाप का प्रारम्भ सबसे पहले आंखों से होता है फिर दूसरे अंगों का योग मिल सकता है। वहीं धर्म का रास्ता कान से आता है, उसी श्रवण से अध्यात्म का मार्ग प्रारम्भ होता है। तंदुल मत्च्छ की घटना से प्रेरणा देते हुए कहा कि हम निरर्थक विचारों से ही अनन्त पाप कर्मों का बन्धन कर लेते हैं।

◆ श्रवण क्रिया योग तक पहुंचती है, वही हमारा मूल प्रॉफिट 

विशेष पाथेय प्रदान कराते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि व्यापार किसी भी वस्तु का हो, टर्न ऑवर भी कितना भी हो, महत्वपूर्ण प्रॉफिट है। उसी तरह हम जो प्रवचन श्रवण या धार्मिक क्रिया करते है, उससे जो हमारा हृदय परिवर्तन होता है, अन्तर में क्या पाया है, आचरण शुद्ध बनता है। श्रवण क्रिया योग तक पहुंचती है, वही हमारा मूल प्रॉफिट है। 

◆ प्रवचन श्रवण से मिलता श्रेयस्कर और अश्रेयस्कर का ज्ञान

वर्तमान के सोशियल मिडिया युग में भी प्रत्यक्ष प्रवचन श्रवण की महत्ता बताते हुए आचार्य भगवंत ने कहा कि उससे प्रेम, प्रेरणा, प्रोत्साहन और पात्रता प्रकट होती है। गुरु भगवंतों के यहा से तिरस्कार कभी नहीं मिलता, करुणा, मैत्री, प्रसन्नता, सात्विकता मिलती हैं। सत् प्रेरणा मिलती है, विसर्जन का लाभ मिल जाता है। टीवी, मोबाइल से प्रवचन श्रवण तो हो सकता है लेकिन जो गुरु भगवंत के सान्निध्य में आकर श्रवण के साथ गुरु का आभामण्डल, वहां का सात्विक माहौल मिलता है, प्रवचन का वातावरण मिलता है। संघ के दर्शन का लाभ मिलता है, तपस्वियों के दर्शन हो जाते है, भावी भव्य आत्माओं का सान्निध्य मिल सकता है, जिससे हमारी भव्यता भी प्रकट हो जाती है। सामायिक इत्यादि धर्म क्रिया हो जाती है। गुरु वन्दन से निर्जरा भी हो जाती है। श्रवण को मनुष्य जन्म से भी दुर्लभ बताया है। हर व्यक्ति सुन कर ही जान सकता है कि श्रेयस्कर किसमें है और अश्रेयस्कर क्या है। उपयोगी कौन है और अनुपयोगी कौन है। श्रेय का आदर करें और अपने जीवन में अपनायें।


◆ धर्म श्रवण से आत्म कल्याण की पात्रता होती प्रकट

गुरुवर ने श्रवण के तीन भाग- श्रवण क्रिया, श्रवण कला और श्रवण योग के बारे में बताते हुए कहा कि सामान्य सुनना क्रिया है, स्वाभाविक रुप से दिन भर में हम अनेकों शब्द सुनते है, वे क्रिया है और कुछ भी नहीं। श्रवण कला वह है जिसमें थोड़ा दिमाग लगा, बुद्धि लगी, हम विश्लेषण कर दिया। जिससे कान लगा वह श्रवण क्रिया। जिसमें कान और बुद्धि लगी वह श्रवण कला। जिसमें कान, बुद्धि के साथ हृदय लगा वह श्रवण योग है। हमें क्रिया को योग में रुपांतरित करना है। योग का अर्थ है हृदय में उतरना और जो बात हृदय में उतरती है वही सामान्य तया आचरण में आ जाती है।

गुरुवर ने कहा कि प्रवचन का प्रारम्भ नमस्कार महामंत्र से नहीं अपितु हमारे वन्दन से ही हो जाता है। वन्दन विनम्रता का ही रुप है। वही से प्रवचन का द्वार खुलता है। धर्म श्रवण से आत्म कल्याण की पात्रता प्रकट होती हैं।

भगवान महावीर के मात्र कुछेक शब्दों के श्रवण, वाणी सुनने से ही रोहिणे चोर को स्वाभाविक रुप से नहीं पकड़ पाने के कारण अभयकुमार की योजना से भी वह बच गया। जिससे उसका हृदय बदल गया एवं आत्म कल्याण के लिए स्वयं महावीर की शरण को स्वीकार कर दीक्षित हो गया।

आगामी कार्यक्रमों की जानकारी के साथ मलयसुन्दरी के आख्यान को व्याख्यायित किया।

समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

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