रजत द्वारा काव्योत्सव का आयोजन

चेन्नई : राजस्थानी एसोसिएशन तमिलनाडु द्वारा "विविध रसों का उत्सव- काव्योत्सव" कार्यक्रम आयोजित किया गया।

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देश के अग्रिम पंक्ति के कवि सर्वश्री सर्वेश अस्थाना, बलराम श्रीवास्तव व दीपिका माही ने अपनी सर्वोत्तम रचनाओं से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। काव्य उत्सव का संचालन हास्य व्यंग के कलाकार श्री गोविंद राठी ने बड़े ही मनोरंजक रुप से किया। भारी संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने कवि सम्मेलन का आनंद लिया। 

प्रारंभ में राजस्थानी एसोसिएशन के सभी पदाधिकारी गण, कवि सम्मेलन समिति के चेयरमैन, सह चेयरमैन द्वारा दीप प्रज्जवलन के पश्चात अध्यक्ष श्री मोहनलाल बजाज ने सभी उपस्थित महानुभावों का स्वागत किया। समिति के चेयरमैन श्री रमेश गुप्त नीरद ने कवि सम्मेलन समिति की रिपोर्ट रखी। श्री नीरद एवं श्री गोविंद मूंदड़ा ने कवियों का परिचय दिया। महासचिव श्री देवराज आच्छा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजस्थानी एसोसिएशन तमिलनाडु की गतिविधियों की झलक पेश की। सहमंत्री श्री अजय नाहर ने धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया। आगंतुक कविगण का अंग वस्त्रम द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में कवि सम्मेलन समिति के चेयरमैन श्री रमेश गुप्त नीरद, सह चेयरमैन श्री विजय गोयल, श्री गोविंद मूंदड़ा, सहमंत्री श्री अजय नाहर‌ व ज्ञानचंद कोठारी तथा रजत के सभी सदस्यगण एवं आतिथ्य समिति का विशेष योगदान रहा। मंच सज्जा में श्री गोविंद मुंदड़ा का सराहनीय सहयोग रहा।

रजत काव्योत्सव

कवयित्री दीपिका माही- 

बन के मीरा पियूं जहर में भी, 

कोई कान्हा सा मीत हो जाए। 

बार बार मिलने की दुआ मत देना। 

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 संचालन कर रहे गोविंद राठी ने श्रोताओं को गुदगुदाते हुए कहा कि

 इश्क मोहब्बत प्यार वफा इससे किसको हुआ नफा।

इधर उसकी मांग भरी, उधर अपनी जेब खफा.... 

सुनाकर पहले तो सभी से ठहाके लगवाए, उसके बाद 

एक दारू की बोतल में वोट रंग बदल देता है। 

दो-चार सालों से ज्यादा नहीं चलता, 

नोट रंग बदल देता है .. 

के माध्यम से मौजूदा हालात पर करारा व्यंग्य किया।

अंत में श्रीवास्तव ने 

दिनभर की उड़ान से थककर शाम ढले घर आते हैं। काव्यामृत को पीने वाले, पीते हैं तर जाते हैं। 

कभी निराशा अहंकार बनाया।

काव्योत्सव की अध्यक्षता कर रहे हास्य और व्यंग्य के मजबूत हस्ताक्षर सर्वेश अस्थाना ने अपने चुटकीले अंदाज में पहले 

आप जैसे लोग अब मिलते नहीं हैं। 

इस महक के फूल अब खिलते नहीं हैं। 

आप चलकर आ गए हैं शुक्रिया। 

लोग तो भूकंप में हिलते नहीं हैं।

 सुनाकर लोगों को हंसाया और 

क्यों हमारे दरम्यां ये चुप्पियां आबाद हैं।

 है हवा खामोश भीतर आंधियां आबाद हैं। 

सुनाकर सम्मेलन का समापन किया।

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