असि, मसि, कृषि के मंत्र दाता थे- भगवान ऋषभ : मुनिश्री जिनेशकुमार


★ भगवान ऋषभ दीक्षा कल्याणक दिवस मनाया गया

◆ सुनिता बैद ने लिया वर्षीतप प्रारंभ का संकल्प

हिन्दमोटर (कोलकाता) : आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री  जिनेशकुमारजी ठाणा-3 के सान्निध्य में भगवान ऋषभ दीक्षा कल्याणक समारोह पारस भवन में मनाया गया। 

 मुनिश्री जिनेशकुमारजी ने कहा कि जैन धर्म आध्यात्मिक व वैज्ञानिक धर्म है। इस धर्म के प्रवर्तक तीर्थकर होते है। इस युग के प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभ हुए। भगवान ऋषभ से पूर्व कुलकर, समाज की व्यवस्था संभालते है। समाज में विकट समस्याएं आने लगी तब लोगों ने कुलकर नाभि से समाधान मांगा, तब नाभि ने राजकुमार ऋषभ को राजा बनाया। ऋषभ ने लोगों को असि, मसि, कृषि का ज्ञान दिया। ऋषभ इस युग के प्रथम कर्म प्रणेता हुए। बाद मे धर्म युग के प्रणेता हुए।

अनंत की यात्रा है- दीक्षा

 मुनि श्री ने आगे कहा कि आज के दिन भगवान ऋषभ ने चार हजार साथियों के साथ दीक्षा ली। दीक्षा अनंत की यात्रा है। दीक्षा का अर्थ है जागना। जिनके कर्म हल्के होते है, वे ही इस पथ को स्वीकार करते हैं। भगवान ऋषभ दीक्षा के बाद भुमंडल पर विचरण करने लगे।

अन्तराय कर्म होते हल्के, वे ही कर सकते तपस्या

मुनिश्री ने आगे कहा- जिन‌के अन्तराय कर्म हल्के होते है वे ही तपस्या कर सकते हैं। "करे तपस्या, मिटे समस्या" तप से कर्म क्षय होते हैं। तप में कोई भी प्रकार का प्रदर्शन, आडम्बर नहीं होना चाहिए। तपस्या केवल निदर्शन, आत्म साक्षात्कार व निर्जरा के लिए करनी चाहिए। बहिन सुनिता बैद ने आज से वर्षीतप प्रारंभ किया।


 मुनिश्री परमानंदजी ने कहा कि भगवान ऋषभ ने दीक्षा के साथ ही तपस्या का प्रारंभ कर तप का संदेश दिया। उन्होंने दीक्षा धर्मयुग के प्रवर्तन के लिए ली। मुनिश्री कुणालकुमारजी ने गीत प्रस्तुत किया। मुनिश्री जिनेशकुमारजी ने जप अनुष्ठान कराया।


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