शिक्षा जीवन को संवारती, सजाती, विवेक संपन्न बनाती है - मुनिश्री जिनेशकुमार
विद्यार्थियों को करवायें जीवन विज्ञान के प्रयोग
बारीपदा उड़ीसा 15.12.2022 ; आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेशकुमारजी का प्रवचन कॉलेज के छात्रों के मध्य दुगड़ निवास, बारीपदा में हुआ।
शिक्षा के साथ हो संस्कारों का जागरण
मुनिश्री जिनेशकुमारजी ने कहा व्यक्तित्व विकास के अनेक मूल्य निर्धारित किए गये है। उसमें एक महत्त्वपूर्ण मूल्य है- शिक्षा। शिक्षा जीवन का अनिवार्य अंग है। शिक्षा जीवन को संवारती है, सजाती है व विवेक संपन्न बनाती है। शिक्षा जीवन का अभ्युदय है, शिक्षा सत्यं, शिवं, सुन्दरं का समन्वित रूप है। शिक्षा के साथ संस्कारों का जागरण जरूरी है। बिना संस्कार की शिक्षा जीवन के लिए भार है। शिक्षा का अर्थ है- जिससे समग्रता का हो। शिक्षा का उद्देश्य हो- सर्वागीण व्यक्तित्व का विकास। सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास के चार आयाम है- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक। जिस शिक्षा में चारों ही आयाम हो, वह शिक्षा सर्वांगीण कहलाती है। वर्तमान में शारीरिक व बौद्धिक शिक्षा का विकास तो बहुत हो रहा है, लेकिन मानसिक व भावनात्मक शिक्षा का अभाव है। जिसके कारण अनुशासनहीनता बढ़ रही है। विद्यार्थी गलत रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन शारीरिक, बौद्धिक प्रशिक्षण के साथ-साथ मानसिक और भावनात्मक प्रशिक्षण जरूरी है। इसके विकास के लिए आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने जीवन विज्ञान का आयाम दिया है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि जीवन विज्ञान के प्रयोगों से जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आता है। एकाग्रता, स्मरण शक्ति,अनुशासन का भी विकास होता है। मुनिश्री ने अणुव्रत, अहिंसा यात्रा की चर्चा करते हुए सद्भावना, नैतिकता, नशा मुक्ति के बारे में बताया। मुनिश्री ने जीवन विज्ञान के प्रयोग भी कराएं।
मुनिश्री कुणालकुमारजी ने अणुव्रत गीत का संगान किया।
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