मुनिश्री मोहजीतकुमारजी का तमिलनाडु राज्य सीमा प्रवेश


अलविदा कर्नाटक - वणक्कम तमिलनाडु

 होसुर/चेन्नई : भारतीय संस्कृति की सन्त परम्परा में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी की आज्ञानुसार उनके सुशिष्य मुनि श्री मोहजीतकुमारजी, मुनि भव्यकुमारजी, मुनि जयेशकुमारजी ने 17 मार्च 2024 को कर्नाटक राज्य में प्रवेश किया था। मुनिवरों ने राज्य के 11 जिलों में शहरों, कस्बों एवं गांवों की 355 दिवसीय (11 माह 21 दिन) यात्रा कर आगामी किलपौक, चेन्नई में चातुर्मास करने हेतु शुक्रवार 07.03.2025 को तमिलनाडु राज्य सीमा में प्रवेश किया। 

 आचार्य श्री महाश्रमण की उद्‌घोषणा के अनुसार कॉफी-काली मिर्च की धरा चिक्कमगलूरू में चातुर्मास सम्पन्न किया। इससे पूर्व सुपारी नारियल केले के बगानों के प्राकृतिक सौंदर्य एवं प्रदूषण मुक्त क्षेत्रों के उतार-चढ़ाव में विचरण करते हुए जन जीवन को प्रतिबोध प्रदान किया।

 इस प्रवास में मुनि मोहजीतकुमारजी के संयम स्वर्ण महोत्सव (दीक्षा पर्याय का 50वा वर्ष) का आयोजन कर्नाटक वासियों के लिए अपूर्व अवसर था।

मुनिवरों के चातुर्मास समाप्ति के बाद कर्नाटक की सर्वोच्च चोटी मुल्लयनगिरी पर सिद्ध शिखर अनुष्ठान के भव्य आयोजन से एक विशिष्ट पहचान मुखर हुई। तत्पश्चात अनेक जिलों की यात्रा करते हुए विजयनगर, बेंगलुरु में मर्यादा महोत्सव किया। 

 अनेक क्षेत्रों की तेरापंथ सभाएं, युवक परिषदें, महिला मण्डल, टीपीएफ, ज्ञानशालाओं ने अपने- अपने उपक्रमों के अनुसार संगोष्ठियां, कक्षाएं, कार्यशालाएं आदि समायोजित कर प्रेरणा- पाथेय प्राप्त किया।

 कर्नाटक राज्यीय यात्रा में स्थानीय, जिला एवं राज्यस्तरीय आयोजन का स्वरूप संघीय प्रभावना में योगभूत बना। प्रेक्षा कल्याण वर्ष एवं अणुव्रत के 77वें वर्ष के सन्दर्भ में विविध आयोजन जैन धर्म की प्रभावना का निमित्त कारण बना। 

 मुनिवरों ने कर्नाटक की संस्कृति, प्राकृतिक परिदृश्य, पर्यावरणीय स्थितियों, मार्गीय उतार-चढाव, जंगलों की नीरवता, क्षेत्रीय निवासियों- प्रवासियों की भावनाएं, उनकी अपनी उपासना पद्धतियां, भाषाई लगाव, एक दूसरे दर्शन की साधना पद्धति को श्रद्धाभाव से जानने की जिज्ञासाएं, जैन सन्तों के प्रति सहज लगाव कर्नाटक की अपनी पहचान है। ऐसे कर्नाटक की सांस्कृतिकता का अपना विशेष अस्तित्व है।