अक्टूम्बर के प्रथम सप्ताह में मनाया जाएगा अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह

चेन्नई : बीसवीं शताब्दी के मध्य में भारत वर्ष राजनीतिक दासता से मुक्त हुआ। देश की जनता प्रसन्न हुई। पर स्वतंत्रता आंदोलन के समय जो देश प्रेम की प्रबल भावना थी, वह दबने लगी। स्वार्थ पूर्ति के लिए आराजकता, आकांक्षा, असहिष्णुता, असहयोगता के भाव घर करने लगे। नैतिक, चारित्रिक बल बिखरने लगा। उस परिस्थितियों को देखते हुए जैनाचार्य तुलसी ने 2 मार्च 1949 को अणुव्रत रुपी असाम्प्रदायिक आन्दोलन का सूत्रपात किया। अणुव्रत कहता है कि आप किसी भी धर्म सम्प्रदाय को मानने वाले हो, आप उसमें अपनी उपासना करें। वह किसी की भी उपासना विधि में हस्तक्षेप नहीं करता है। अणुव्रत तो कहता है कि व्यक्ति का जीवन प्रामाणिक हो, पवित्र हो, समस्या पैदा करने वाला न हो।

 जो व्यक्ति नशा, मांसाहार इत्यादि सप्त व्यसनों से दूर रहता है, वह अणुव्रत के नियमों को स्वीकार कर सकता है, वह अणुव्रती कहलाता है। मानवीय मूल्यों के संरक्षण, सर्वधन के लिए अणुव्रत के 11 नियमों की आचार संहिता बनाई गई। जो इस प्रकार है-

 अणुव्रत : आचार संहिता

1. मैं किसी भी निरपराध प्राणी का संकल्पपूर्वक वध नहीं करूंगा।

• आत्म-हत्या नहीं करूंगा।

• भ्रूण हत्या नहीं करूंगा।

2. मैं आक्रमण नहीं करूंगा।

• आक्रामक नीति का समर्थन नहीं करूंगा।

• विश्व-शांति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न करूंगा।

3. मैं हिंसात्मक एवं तोड़-फोड़-मूलक प्रवृत्तियों में भाग नहीं लूंगा।

4. मैं मानवीय एकता में विश्वास करूंगा।

• जाति, रंग आदि के आधार पर किसी को ऊंच-नीच नहीं मानूंगा।

• अस्पृश्य नहीं मानूंगा।

5. मैं धार्मिक सहिष्णुता रखूंगा।

• साम्प्रदायिक उत्तेजना नहीं फैलाऊंगा।

6. मैं व्यवसाय और व्यवहार में प्रामाणिक रहूंगा।

• अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि नहीं पहुंचाऊंगा।

• छलनापूर्ण व्यवहार नहीं करूंगा।

7. मैं ब्रह्मचर्य की साधना और संग्रह की सीमा का निर्धारण करूंगा।

8. मैं चुनाव के संबंध में अनैतिक आचरण नहीं करूंगा।

9. मैं सामाजिक कुरूढ़ियों को प्रश्रय नहीं दूंगा।

10. मैं व्यसन मुक्त जीवन जीऊंगा।

• मादक तथा नशीले पदार्थों शराब, गांजा, चरस, हेरोइन, भांग, तंबाकू आदि का सेवन नहीं करूंगा।

11. मैं पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूक रहूंगा।

• हरे-भरे वृक्ष नहीं काटूंगा।

• पानी का अपव्यय नहीं करूंगा।

 अणुव्रत आचार संहिता से सामान्य इंसान से लगाकर राष्ट्रपति तक इसका प्रभाव पड़ा। इसकी सम्यक् पालना से व्यक्ति- व्यक्ति का सुधार होगा। व्यक्ति सुधार से परिवार, समाज, देश सुधार स्वतः हो जाता हैं।

  अणुव्रत आन्दोलन अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण करने के बाद भी उसकी प्रासंगिकता आज भी सर्वमान्य है। वर्तमान अणुव्रत अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी के आध्यात्मिक सरंक्षण में अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी (अणुविभा) देश भर में इस आन्दोलन को चला रही हैं। 

 अणुविभा के तत्वावधान में प्रत्येक वर्ष 01 अक्टूबर से 07 अक्टूबर तक देश भर में फैली अणुव्रत समिति, अणुव्रत मंच व अन्य संस्थाओं के सहयोग से अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह मनाता है।

 अणुव्रत समिति, चेन्नई भी मुनि श्री हिमांशुकुमारजी व साध्वी डॉ गवेषणाश्रीजी के सान्निध्य के अलावा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर यह आयोजन आयोजित करेंगी। मीडिया पार्टनर राजस्थान पत्रिका के साथ मिलकर अणुविभा राष्ट्रीय उपाध्यक्षा श्रीमती माला कातरेला, अणुव्रत समिति, चेन्नई अध्यक्ष ललित आंचलिया के नेतृत्व में अनेकों कार्यकर्ता इस की सम्यग् आयोजना में लगे हुए हैं।