गुरु नहीं तो जीवन शुरु नहीं - मुनि हिमांशुकुमार


चेन्नई : तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर तेरापंथ जैन विद्यालय में आयोजित प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए मुनि हिंमांशुकुमार ने कहा कि आज 265वां तेरापंथ स्थापना दिवस और भारत का गौरवशाली पर्व गुरु पूर्णिमा है, दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं। जिसके जीवन में गुरु नहीं, उसका जीवन शुरु नहीं। हमें गुरु भिक्षु ने भगवान महावीर वाणी को जन भोग्य और सरल रूप में समझाया और उनका वही मार्गदर्शन आगे चल कर तेरापंथ की स्थापना का निमित्त बना। 

 आचार्य भिक्षु की क्रांत दृष्टि के परिणाम स्वरूप स्थापित तेरापंथ के सिद्धांतों और मान्यताओ को स्पष्ट करते हुए मुनिश्री ने आगे कहा कि कहा कि संसार और साधना का मार्ग एक नहीं, अलग है। आत्मशुद्धि का मार्ग और व्यवहार का, समाजिकता का मार्ग एक नहीं, अलग-अलग है।


 तेरापंथ के तत्त्वदर्शन को भिक्षु विचार दर्शन के माध्यम से समझने की प्रेरणा देते हुए मुनिश्री कहा कि मंगल मार्ग आचार्य भिक्षु ने सदा जिनवाणी की आराधना की और उसी का पालन करने को आह्वान किया। जरुरत इस बात की है कि हम तत्व को समझे, सत्य को समझें, जिससे हम आदर्श और सफल जीवन के मार्ग पर प्रशस्त होते रहें।

 इनसे पूर्व मुनि हेमन्तकुमार ने अपने संयोजकीय वक्तव्य में कहा कि गुरु वह है, जो हमारी स्वयं से मुलाकात कराए। जो अपने पीछे लगाए, वह गुरु नहीं। आज के भक्तों और शिष्यों की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि जो हमारी मानें वह मन भावना और हम सिलेक्ट करेंगे और जो हमारी न माने वह नहीं मान्य और कर देंगे रिजेक्ट।

 मुनि ने गुरु के प्रति समर्पण और निष्ठा भाव को पुष्ट करने की प्रेरणा देते हुए ते हुए कहा की जुडना महत्त्वपूर्ण है और इससे भी महत्वपूर्ण है जुड़े रहना। जिसमें विरोध और प्रलोभन झेलने की क्षमता है, वहीं अपने निष्ठा भाव को स्वस्थ रख सकता है। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ कन्या मंडल ने "भिक्षु अष्टकम् के सुमधुर संगान से किया।