परमात्मा साइन बोर्ड की तरह मार्ग दर्शन बताने वाले : जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी
सुख ग्राहक के साथ, सुख के विक्रेता भी बनने की दी प्रेरणा
14.08.2023 ; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में पर्यूषण महापर्व के दूसरे दिन धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि आज का दिन चिन्तन का भी है और संकल्प का भी। चिन्तन करना है बिते हुए कल के लिए, हमने कल क्या किया, उस अमूल्य घड़ी में करणीय धार्मिक करणी की या ऐसे ही प्रमाद में समय गंवा दिया। संकल्प करना है आने वाले समय के लिए। अगर मैने कल अपने, अपनी आत्मा के बारे में ध्यान नहीं रखा, अब जागरूक रह कर इन आठ दिनों में तो विशेष ध्यान में अपनी चेतना में अवस्थित होना है। हमें दो से प्रेम करना है- एक परमात्मा से और दूसरा परमात्म वाणी से। इन दो से हमें हृदय से प्रेम करना हैं, अन्तर की गहराई से करना है।
◆ परमात्मा आत्मा का स्वरूप, मोक्ष का मार्ग बताने वाले उपकारी
गुरुवर ने कहा कि माता जन्म देने के कारण, पिता जीवन देने के लिए, गुरु-अध्यापक शिक्षा देने के कारण उपकारी है, इनका उपकार प्रत्यक्ष दिखता है। उसी तरह परमात्मा का भी प्रत्यक्ष उपकार है- जगत का दर्शन, हमें संसार का स्वरूप बता आत्म स्वरूप को पहचानने की ओर में गतिशील कराते हैं। जैसे रोड़ पर लगा साइन बोर्ड हमें दीक्षा देता है कि आगे गहरी खाई है और हम अपने पुरुषार्थ से गाड़ी को रोक, पिछे ले, दूसरी दिशा में ले जाते है। उसी तरह परमात्मा भी हमें साइन बोर्ड की तरह मार्ग दर्शन बताते है, आत्मा का स्वरूप समझाते है, मोक्ष का स्वरूप समझाते है, कल्याण का मार्ग बताते है, लेकिन चलना तो हमें ही पड़ेगा। यही परमात्मा का सबसे बड़ा उपकार है इसलिए हम भी परमात्मा से प्रेम करते है, उनकी वाणी पर श्रद्धा करते है। इन आठ दिनों में तो मुझे विशेष रूप से परमात्मा की आज्ञानुसार ही जीवन जीना है। मेरे सम सभी जीव है, यह भाव हर समय रहना चाहिए। सबके प्रति दया भाव रहना चाहिए। परिवार में एक दूसरे के सुख में सुखी तो रहते ही है, वे दु:ख में भी एक दूसरे के सहयोगी बनते है। उसी प्रकार साधार्मिक बंधुओ में भी आपस में प्रेम होना चाहिए, मिलने पर आनन्द का अनुभव होना चाहिए। परिवार में वात्सल्य भाव रहना चाहिए।
◆ सभी जीवों के प्रति अपनत्व का भाव रखें
आचार्यवर ने कहा कि हमें इन पाँच कर्तव्यों का पालन करना है- साधार्मिक वात्सल्य, क्षमापना, अठम तप की तपस्या, चैत्य परिपाटी। जैसे छोटा बच्चा ज्यादा दिनों के बाद जब माँ से मिलता है, तब जैसे प्रेम से माँ से लिपट जाता है, उसी तरह हमें भी परमात्मा से निश्चल प्रेम होना चाहिए। कुमार पाल महाराजा ने मकोड़े के प्रति प्रेम से, उसको पीड़ा न हो, इसलिए वह चाकू से अपनी चमड़ी को दूर कर, मकोड़े को भी दूर करता है, हमें भी सभी जीवों के प्रति अपनत्व का भाव रखना चाहिए क्योंकि हम भी तो उन सभी योनियों में जा कर आये हो सकते है, उस आधार पर वे हमारे भाईबंध हुए। कषायों की कालिमा के कारण ही मैं संसार में भटक रहा हूँ, अब मुझे कर्म निर्जरा करनी है, अठम् तप से, परमात्मा वाणी पर श्रद्धा से बंधे कर्मों को तोड़ना है। अपनी आत्मा को निर्मल बनाना है। मेरे अन्तर में क्षमापना का भाव पैदा होता है, सारे दोषों को मिटाने की ओर गतिशील होता हूँ।
◆ फूल की तरह स्वप्रिय, परिवार प्रिय, लोकप्रिय, प्रभु प्रिय बने
प्रेरक प्रसंग के माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा कि जैसे फूल सुंगधित होता है, हर किसी को प्रिय होता है, भगवान के चरणों में अर्पित होता है। फूल स्वप्रिय होता है, हम भी जो है, उसमें सुखी रहे, नहीं है उसके पिछे पागलों की तरह नहीं, अपितु जो है उसमें आनन्दित रहना चाहिए। फूल परिवार प्रिय है, पत्ते, कांटे, जड़ सभी फूल से सन्तुष्ट है और फूल भी सभी से सन्तुष्ट रहता है। हमें भी परिवार प्रिय बनना चाहिए। आपकी भाषा, आपके आचरण से परिवार सन्तुष्ट रहे, ऐसे कार्य करने चाहिए। सुख के ग्राहक के साथ सुख के विक्रेता भी बने। फूल का तीसरा गुण है- वह लोकप्रिय है। कोई भी आते है, वे स्वत: फूलके प्रति आकर्षित होते है और उसे चाहने की इच्छा रखते है और लेकर भी जाते है। लोकप्रिय का अर्थ इतना ही नहीं है कि लोगों में मेरी महिमा हो, यश हो। मेरा नाम जाने यह जरूरी नहीं अपितु लोकप्रिय का इतना ही मतलब है कि जब भी लोग मुझे देखे वे भीतर में आनंद, प्रसन्नता का अनुभव करें। फूल का चौथा गुण, महत्वपूर्ण गुण है वह प्रभु प्रिय है। परमात्मा के चरणों में ही नहीं, उनके हाथों, सिर पर भी फूल को चढ़ाया जाता है।
हम इन आठ दिनों में जो अनुभव करे, जो प्राप्त करे, उसी तरह हमारा जीवन होना चाहिए, आचरण होना चाहिए। जीवन में हमारी रिपोर्टिंग सदैव सकारात्मक रहनी चाहिए। जीवन में अच्छाई, बुराइयां हो सकती है, पर हमारी रिपोर्टिंग अच्छाई की होनी चाहिए। टींका टिप्पणी न हो। हमारा व्यवहार सपोर्टिंग होना चाहिए।
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