65 दिनों के संथारे के साथ सुश्राविका गुलाबीदेवी का मनोरथ पूर्ण

★ इतिहास दुर्लभ संथारे के पथिक संकलेचा दम्पति ने संथारे की पूर्णाहुति के साथ ही रचा जसवल धरा पर अद्वितीय व अनूठा इतिहास

 ◆ सम्पूर्ण विश्व मे यह प्रथम व विरला उदाहरण

 धर्म व अध्यात्म नगरी जसोल की धरा का कण-कण व अणु-अणु पावन पवित्र है।  इस उर्वरा भूमि पर धर्म-अध्यात्म, त्याग-तपस्या,संथारा-सलेंखना,  शिक्षा-दीक्षा आदि के क्षेत्र में अनेक इतिहास रचे गए हैं। और रचे भी जा रहे हैं। जसोल नगर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण सिवांची-मालाणी विस्तार के ओसवाल समाज को गौरवान्वित करने वाला इतिहास दुर्लभ उदाहरण प्रस्तुत किया है जसोल के सु श्रावक श्री पुखराज जी संकलेचा व उनकी अर्धांगिनी सुश्राविका श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा ने सजोड़े संथारे के मनोरथ को स्वीकार कर व उसकी पूर्णाहुति कर। स्वंय शांतिदूत युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी जब संथारा व्रती संकलेचा दम्पति को दर्शन देने व श्रीमती गुलाबी देवी को संथारे के प्रत्याख्यान कराने हेतु उनके निवास पर पधारे तब गुरूदेव ने अपने मुखारविंद से फ़रमाया था कि "मैंने तो आज तक इससे पूर्व सजोड़े संथारे  का कोई अन्य उदाहरण नही सुना"। सचमुच में सम्पूर्ण विश्व मे सजोड़े संथारे का यह पहला व विरला प्रसंग ही होगा। आज जब व्यक्ति तनिक भी अस्वस्थ हो जाता है तो वो भयभीत हो जाता है व अनेक शंकाओं-कुशंकाओं से घिर कर चिंतातुर हो जाता है कि न जाने मेरा क्या होगा? ठीक इसके विपरीत कभी राजमहेन्द्री आंध्रा में एक पेपर मिल में वरिष्ठ अधिकारी रहे सुशिक्षित व्यक्तित्व के धनी श्री पुखराज जी संकलेचा तथा उनसे प्रेरित होकर उसी राह को अपना कर इतिहास रचने वाली सुश्राविका श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा ने पूर्ण चेतनावस्था में संथारा सलेंखना के मनोरथ को स्वीकारा व उसे अंजाम तक पहुंचाया। इस सजोड़े संथारे की खबरें, स्टोरियां कमोबेश सम्पूर्ण मीडिया जगत में प्रकाशित व प्रसारित हुई, भले ही वो प्रिंट मीडिया हो या इलोक्ट्रॉनिक्स मीडिया या फिर सोश्यल मीडिया। देश भर में इस इतिहास दुर्लभ संथारे की चर्चा रही। यह सत्य है कि मृत्यु को आमंत्रण तो कोई वीर-वीरा ही दे सकता हैं। किसी चिंतक ने ठीक ही कहा है कि जहां साहस और सक्रियता खेला करती है वहां एक आभा मंडल खड़ा हो जाता है, ठीक ऐसा ही आभामंडल संथारा साधक श्री पुखराज जी संकलेचा व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गुलाबी देवी के तेजस्वी चेहरे पर प्रतिबिंबित हो रहा था। श्रीमती गुलाबी देवी ने तो जब से संथारा व्रत स्वीकारा है तब से लेकर संथारे की पूर्णाहुति तक पूर्ण चेतन अवस्था मे वे नजर आ रही थी। संथारे के अंतिम पड़ाव तक वे बिस्तर पर बैठी धर्म ध्यान में लीन हुई नजर आई है, उनके इर्दगिर्द भजन, आगम गाथाओं का वाचन व णमोकार मंत्र की स्वरलहरियां कानों में गूँजती रही हैं। 65 दिनों के दौरान की दीर्घ अवधि में उनकी चेतन अवस्था ये उनके दृढ़ मनोबल व गुरु आस्था की द्योतक व परिचायक साबित हुई है। जसोल निवासी स्व: श्री रावत मल जी मांडोतर (निम्बाणी) की सपुत्री श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा की बचपन से ही धर्म-अध्यात्म व त्याग-तपस्या के प्रति गहरी रुचि रही है। 15 फरवरी 2042 को अतार्थ 81 वर्ष पूर्व जसोल में जन्मी, पली व बड़ी हुई श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा ने अपने जीवन मे अनेक त्याग तपस्या भरे प्रत्याख्यान किए हैं। अपने जीवन मे 8 अट्ठाइयाँ के अलावा 9 व 15  की तपस्याएं  तथा 12 बेला, 1 तेला की तपस्याएं आपने की हैं। तेले-तेले पारणे व श्रावण माह में एकान्तर तप में आप रत रही हैं। प्रतिदिन अल्पहार व मध्यान्ह तथा सांयकालीन भोजन के बीच-बीच मे व पश्चात सौगन्ध पालना आपकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा रहा है। कम व मधुर बोलना आपकी विशिष्ट खूबी थी। पतिदेव राजमहेन्द्री (आंध्रा) में एक पेपर मिल में वरिष्ठ अधिकारी के रूप में सेवारत रहने से दोनों ही वर्षों तक वहां पर रहे। यह उल्लेखनीय है कि श्री पुखराज जी संकलेचा जसोल के समीप विश्व प्रसिद्ध श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा तीर्थ में दो बार ट्रस्टी के रूप में सेवाएं प्रदान की हैं व आपका अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ रहने से आप अनेक जैन साधु-साध्वियों को अंग्रेजी पढ़ाने में योगभूत बने थे। आपके पुत्र श्री सुशील संकलेचा व श्री कांति संकलेचा तथा पुत्रियां बेबी, उषा व मुनिया सभी के सभी धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक प्रवृति से ओतप्रोत है व अपने  मम्मी-पापा द्वारा प्रदत्त संस्कारों की पालना करते आ रहे हैं। संकलेचा दम्पति के संथारे के दौरान संकलेचा परिवार के हर छोटे से बड़े सदस्य समर्पित नजर आए। उल्लेखनीय बिंदु यह हैं कि  श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा ने संथारे का मनोरथ तो मन ही मन मे वर्ष 2012 में परमपूज्य गुरूदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के जसोल चातुर्मास में दीक्षित अपनी दोहिती व बेबी- सुरेश कुमार भंसाली की सपुत्री के दीक्षा प्रसंग पर ही स्वीकार दिया था कि दोहिती की दीक्षा के लगभग दस वर्ष पश्चात में संथारा पथ पर अग्रसर हो जाऊंगी। संयोग वश अपनी संसार पक्षीय दोहिती साध्वी मैत्रीयशाजी की दीक्षा के लगभग 10 वर्ष पश्चात श्रीमती गुलाबीदेवी संकलेचा ने अपने मन मे संजोए संकल्प को यतार्थ रूप देते हुए व अपने पतिदेव श्री पुखराजजी को इस मार्ग पर गतिमान होते देख शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की पावन उपस्थिति में अपने ही निवास पर पूर्ण चेतन अवस्था मे संथारा के मनोरथ को स्वीकारा व आज गुरुवार 2 मार्च 2023 को यह संथारा पूर्ण रूप से सातापूर्वक सीज भी गया। गणाधिपति गुरूदेव श्री तुलसी ने संस्कार बोध में यह उदृत भी किया है कि..

संस्कारों का जागरण होता जहां प्रकाम

खुलते रहते है वहां नए नए आयाम

निश्चित रूप से संकलेचा परिवार में संस्कारों के जागरण के फलस्वरूप वहां सजोड़े संथारे के आयाम स्थापित हुए। यह सर्वविदित है कि श्री पुखराज जी संकलेचा व श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा दोनों ही पति-पत्नी का जीवन धार्मिक संस्कारों से संस्कारित रहा है व सम्पूर्ण परिवार देव-गुरु व धर्म के प्रति निष्ठाशील है।


संकलेचा दम्पति इन्हीं संस्कारों का बीजारोपण परिवार जनों में करते रहे हैं। ये सर्वविदित है कि जीते तो बहुत लोग है जिन्हें हम याद करते रहते हैं लेकिन जो मृत्यु का वरण कर भी किसी के मन मे जिए तो ये महत्व की बात है। अमूमन हम अपने स्वार्थ वश कई बार परलोक वासी आत्मा के याद करते है पर किसी की याद में जीवन के मार्गदर्शन की रेखाओं का अंकन होता है तो वह यादगार अमर हो जाती हैं। निश्चित रूप से संकलेचा दम्पति ने सजोड़े संथारे की राह अपना कर व अपने मनोरथ पूर्ण कर एक नव इतिहास का सृजन किया है। नमन आप दोनों की त्याग व समर्पण भावना को, वैसे जसोल एक ऐतिहासिक नगर है जहां के जर्रे-जर्रे में त्याग-तपस्या की बयार समाई हुई है। सम्पूर्ण जसोल के ओसवाल समाज के लगभग 400 परिवार है और 40 के आसपास अब तक इस नगर में दीक्षाएं सम्पन्न हो चुकी है, यानी प्रत्येक दसवें व्यक्ति में एक दीक्षित है और इस छोटे से कस्बे में संथारा व्रत स्वीकार कर पूर्णाहुति के अंजाम तक पहुंचाने के एक दर्जन के आसपास गौरवशाली उदाहरण है। नमन है इस नगर की चारित्र आत्माओं व त्यागियों व तपस्वियों तथा पुण्यात्माओं को जिनके त्याग व समर्पण की बदौलत यह नगर एक अलग स्वरूप में उभर कर आया।

अंत मे किसी कवि की यह पंक्तियां --

नयनों की नाव आंसुओं में डोलती है,

स्मृति जब विगत पट खोलती है।

मुख असमर्थ हो जाता है कुछ कहने को,

आपकी कहानी जब आंखों में बोलती है।।


साभार : गणपत भंसाल (सूरत-जसोल)

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