तप से होता आंतरिक ऊर्जा का प्रस्फोटन : मुनि श्री अर्हत् कुमारजी
83 दिन का आयंबिल तप कर बनाया रिकॉर्ड
गाँधीनगर, बंगलुरू : मुक्ति के चार सोपानों में चौथा सोपान है तप। तप वह अग्नि है, जिसमें जन्म-जन्म के संचित पातक (पाप कर्म) जलकर नष्ट हो जाते है और आत्मा का दिव्य स्वरूप उद्घाटित होता है। तप कर्मों का पतन कर हमारी आत्मा की तेजस्वीता को वृद्धिगत करता है। उपरोक्त विचार तेरापंथ सभा, गाँधीनगर, बंगलुरू द्वारा समायोजित तपोभिनन्दन समारोह में मुनिश्री अर्हत् कुमारजी ने कहे।
मुनि श्री ने आगे कहा कि तप के अनेकों प्रकार है, जिस मे एक महत्पूर्ण है- आयम्बिल तप। स्वाद विजय की अप्रतिम साधना है - आयम्बिल। अपने मन के नियंत्रण द्वारा, रसनेन्द्रिय पर कंट्रोल कर, इसकी आराधना करने वाला तप की प्रयोगशाला मे अपनी आत्मा को कुंदन की तरह निखार लेता है। आयम्बिल तप से आधी-व्याधि का शमन होता है, आंतरिक उर्जा का प्रस्फोटन होता है। आयम्बिल तप वासना से उपासना की ओर ले जाता है। भाई मनोहरजी ने 83 दिनों का आयम्बिल कर अपनी दृढ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है। बेगलोर मे एक कीर्तिमान स्थापित किया है। ऐसे ही आगे बढते हुए आत्मोत्थान करते रहे।
मुनि श्री भरतकुमारजी ने कहा कि जिसका जीवन होता तप व जप मय, उसका जन्म मरण का मिट जाता भय, उससे वसुंधरा हो जाती अभय, उसकी इह भव परभव में होती जय। मुनि श्री जयदीपकुमारजी ने सुंदर गीतका का संगान किया।
तपस्वी मनोहरजी चावत ने मुनिश्री से तप के प्रत्याख्यान किए। तेरापंथ सभा द्वारा अभिनंदन पत्र भेट किया गया। सभाध्यक्ष कमलसिंह दुगड़ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए, तपोभिनंदन पत्र का वाचन किया। कोषाध्यक्ष कन्हैयालाल सिंघवी ने केन्द्र द्वारा प्राप्त पत्र का वाचन किया। तेयुप अध्यक्ष प्रदीप चोपडा, ते म मं, पूर्वमंत्री लता गादिया, सभा मन्त्री गौतम माण्डोत, राइस चावत, नयन चावत, छवि चावत ने भी अपने विचार रखे।
राजेश जी मारु ने 11 और प्रेरणा दुगड़ ने 9 तप का प्रत्याख्यान किया। इससे पूर्व महावीरजी जैन ने मुनिश्री के सान्निध्य मे 63 दिनों का आयम्बिल तप किया था, उनका भी अभिनंदन सभा द्वारा किया गया।
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