आध्यात्मिकता से समृद्ध भारत : मुनि सुधाकरजी


  संस्कृति और संस्कारों के संवर्धन के दिये टिप्स

माधावरम्, चेन्नई 16.10.2022 ; सम्पूर्ण विश्व में एक मात्र भारतवर्ष को ही विश्व गुरु कहा गया है। संसार के अनेकों विकसित देशों के पास भोग-उपभोग के साधनों की बहुलता होते हुए भी भारत को ही भारतमाता से सम्बोधित किया जाता है। उपरोक्त विचार श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट, चेन्नई की आयोजना में जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर में "हमारी पहचान - हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार" विषयक पर विशेष कार्यशाला में मुनि सुधाकरजी ने कहें।

 जनमेदनी को उद्बबोधन देते हुए मुनिश्री ने कहा कि भारत में विकास से ज्यादा चरित्र पर, सम्पत्ति से ज्यादा संस्कृति पर बल दिया जाता है। सत् संस्कृति से ही संस्कार बलवान बनते है। मुनिश्री ने पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से जन्मदिन इत्यादि मनाने, को बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति तोड़ने, फोड़ने, बुझाने की नहीं अपितु जोड़ने की संस्कृति हैं। अधंकार में रोशनी जलाने की संस्कृति हैं। 


 मुनिश्री ने विशेष प्रेरणा पाथेय देते हुए कहा कि दो नावों की सवारी जीवन को डुबोने वाली हो सकती हैं। अपनी गौरवशाली भारतीय संस्कृति को ही अपनाने से हम उन्नत बन सकते हैं, विकसित बन सकते है, उपयोगी बन सकते है।

 अनेकों जीवनोपयोगी टिप्स बताते हुए मुनि श्री ने कहा कि प्रतिदिन सुबह उठते ही अपने इष्ट वन्दन के बाद, बड़ो के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने वाला कभी बदनसीब नहीं बन सकता। उनसे मिलने वाली भीतर की दुआ, दवा से भी ज्यादा काम करती है। बड़ो का सिर पर हाथ व्यक्ति को शक्तिशाली, निर्भय बनाता है।

 शब्द विज्ञान की शक्ति को बताते हुए कहा कि हिन्दी वर्णमाला में हमें अ से अज्ञानी और ज्ञ से ज्ञानी बनाते हैं। सकारात्मक शब्द ऊर्जा का सम्प्रेषण करते हैं। शुभ बोले, शुभ सुने, शुभ कहें, शुभ चिन्तन करें, इन शुभों से अपने आप को भावित करते रहे।

 अन्न के बारे में बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि हमें आनन्द के क्षण और अन्न के कण को कभी छोड़ना नहीं चाहिए, व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। तिथियों की उपयोगिता बताते हुए कहा कि भारत की सबसे बड़ी वैज्ञानिक संस्था इसरो भी अपने प्रयोगों को तिथि के अनुसार प्रारम्भ करती है। 

  मुनि श्री नरेशकुमारजी ने विषयानुरूप विचार व्यक्त किये। उपासक धनराज मालू ने छापर में गुरु सन्निध्यि के समाचार देते हुए गीत का संगान किया। 




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