अणुव्रत व अहिंसा से विश्वशांति संभव - मुनि जिनेशकुमार
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतिम दिन अहिंसा दिवस समारोह आयोजित हुआ
कटक, उड़ीसा 02.10.2022 ; युगप्रधान अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेशकुमारजी ठाणा -3 के सान्निध्य में अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के द्वारा निर्देशित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तिम दिन अहिंसा दिवस के रूप में अणुव्रत समिति कटक द्वारा समारोह का आयोजन तेरापंथ भवन में किया गया। जिसका विषय था अणुव्रत, अहिंसा और विश्वशांति। अहिंसा दिवस समारोह में बालेश्वर के सांसद श्री प्रतापचंद्र षड़ंगी व सामाचार पत्र द समाज के पूर्व संपादक डा. प्रमोदकुमार महापात्र मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे।
इस अवसर पर मुनि जिनेशकुमार ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की उन्नति में चरित्र का विशेष योगदान रहता है। अणुव्रत चरित्र शुद्धि का आन्दोलन है। अणुव्रत जीवन की कला है, जीवन का विज्ञान है, जीवन का समग्र दर्शन है। अणुव्रत भ्रष्टाचार के तीखे तीरों का से बचाने वाला सुरक्षा कवच है। मानव जीवन की न्यूनतम आचार संहिता है। मनुष्यता का व्यावहारिक मानदंड है। अणुव्रत हृदय परिवर्तन का सिद्धान्त है। संक्षेप में कहे तो मानव धर्म है। अणुव्रत का अर्थ है छोटे छोटे नियम। कोई भी धर्म का व्यक्ति अणुव्रत के नियम स्वीकार कर सकता है। अणुव्रत जैन बनने की बात नहीं करता है, गुड मेन बनने की बात करता है। देश को अणुबम नहीं, अणुव्रत की आवश्यकता है। अणुव्रत सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान देने की क्षमता रखता है।
मुनिश्री ने आगे कहा- आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का सूत्रपात कर हरिजन की झोपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक अलख जगाई। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतिम दिन अहिंसा दिवस पर बोलते हुए मुनि ने कहा कि भारतीय संस्कृति अध्यात्मप्रधान संस्कृति है। अध्यात्म की आत्मा अहिंसा है। अहिंसा का अर्थ है प्राणीमात्र के प्रति संयम रखना। भगवान महावीर ने विश्व को अहिंसा का दर्शन देकर महान उपकार किया। अहिंसा से ही विश्व शांति संभव है। अहिंसा की शुरुआत स्वयं से हो। अहिंसा के विकास के लिए संयम, समता, सादगी, संतोष ये चार सकार उपयोगी है। अहिंसा से मैत्री, करुणा, प्रमोदभावना, तटस्थता का विकास होता है। वर्तमान युग में अहिंसा का प्रशिक्षण जरुरी है। आचार्य महाप्रज्ञजी व आचार्य महाश्रमणजी ने अहिंसा यात्रा करके मानव को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का उपदेश व प्रशिक्षण दिया। *राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा के पुजारी थे। लाल बहादुर शास्त्री संयम, सादगी के प्रतीक पुरुष थे।*
कार्यक्रम में अहिंसा गीत का संगान मुनि कुणालकुमार ने किया। मुख्य अतिथि सांसद प्रतापचन्द्र षड़ंगी ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में कहा- अणुव्रत विचार क्रांति का आंदोलन है। एकात्म भाव अणुव्रत का मूल सिद्धान्त है। अणुव्रत से अणुबम का उपचार किया जा सकता है। भारत का परिवर्तन तभी संभव है जब भारतीयों का परिवर्तन हो, वह अहिंसा से संभव है। अहिंसा के अभ्यास को आचरण में लाने के संकल्प से भारत विकसित भारत बन सकेगा। आचार्य तुलसी व आचार्य महाश्रमणजी ने अणुव्रत व अहिंसा के जरिये जन सुधार का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
विशिष्ट अतिथि डा. प्रमोद महापात्र ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अणुव्रत के नियमों के पालन से इस मानव सृष्टि को विनाश से बचाया जा सकता है। वर्तमान में युद्ध की नहीं, अपितु अहिंसा के आचरण की आवश्यकता है। अहिंसा का आचरण संसार के लिए कल्याणकारी है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ तेरापंथ महिला मंडल के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण अणुव्रत समिति के अध्यक्ष मुकेश डूंगरवाल ने दिया। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष मोहनलाल सिंघी ने अपने विचार व्यक्त किये। आभार ज्ञापन अणुव्रत समिति के मंत्री विकास नवलखा ने किया। कार्यक्रम का संचालन श्री प्रफुल्ल बेताला ने किया। अतिथियो का समिति की ओर से सम्मान किया गया। कार्यक्रम में अच्छी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे। कार्यक्रम को सफल बनाने में रणजीत दुगड, भैरव दुगड, कमल बैद, पंकज सेठिया, संतोष सिंधी आदि कार्यकर्ताओं का विशेष योगदान रहा।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस, जीवन विज्ञान दिवस, अणुव्रत प्रेरणा दिवस, पर्यावरण शुद्धि दिवस, नशामुक्ति दिवस, अनुशासन दिवस व अहिंसा दिवस का आयोजन किया गया।
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