मानव शरीर में इन्द्रियाँ स्विच तो, मन मेन स्विच


तेरापंथ सभा भवन गांधीनगर, बेगलुरु मे तेरापंथ महिला मंडल के बेनर तले हुआ रोचक नाटक का आयोजन

   श्रद्धेय मुनि श्री अर्हत् कुमारजी ने उपस्थित जनमेदनी को फरमाया कि इन्द्रिय स्विच तो मन मेन स्विच है। जो संसार से भयभीत होता है, वह इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का प्रखर पुरुषार्थ कर सकता है। इन्द्रियों को जीतने वाला इन्द्र से भी महान होता है। इंद्रियों का स्थान भयमुक्त है, जहां जीवात्मा को सावधान रहना होता है। जब लालसा के सरोवर में इंद्रिय रूपी क्यारियाँ उगने लगती हैं, तब विषय- विकार रूपी जहरीले पौधे उत्पन्न होने से जीवात्माएं मूर्छित हो जाती है। जैसे समुद्र, शमशान, पेट और लोभ का खड्डा कभी भी नहीं भरता, वैसे ही इंद्रियों का समूह अभी भी तृप्त नहीं होता। श्रद्धा का मार्ग चयन करके आत्मा स्वयं को तृप्त कर सकती है। मोह राजा की दासियाँ इंद्रिया ही आत्मा को विषय रूपी बंधनों में जकड़ कर रखती है। जैसे- जैसे मोह का जाल फैलने लगता है, वैसे - वैसे जीव इंद्रियों का गुलाम होने लगता है। इंद्रियों रूपी घोड़ों की लगाम यदि अपने हाथों में है, तो हम गुलाम नहीं बन सकते। इन्द्रियाँ स्वीच है, तो मन हमारा मेन स्विच है। ये सारे स्विच हमारी आत्मा के बीच है। आत्मा का पावर हाउस यदि स्वयं के नियंत्रण में है, तो हम शक्तिशाली है। चौबीस तीर्थंकरों ने मन पर विजय प्राप्त की थी। जिन्होने इंद्रियो पर विजय प्राप्त की, वे जिनेन्द्र कहलायें। जिनेंद्र से ही जैन बना।

      मुनि भरतकुमारजी ने चिरपरिचित अंदाज मे कहा - प्रभु की वाणी से मिटा भ्रम, जो करता है पाँच इन्द्रियों का संयम, उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है यम, हर समय चलता रहे संयम क्रम, यही है हमारा धर्म। मुनि जयदीपकुमारजी ने समुधुर गीत का संगान कर ज्ञान व भक्ति जगाई।

     जीतो के उपाध्यक्ष भाई पारस भंसाली ने अपने विचार रखे। तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने शानदार, जबरजस्त, मस्त ज्ञानवर्धक नाटिका प्रस्तुत किया। जिसको देख कर जन मेदीनी ने ऊँ अर्हम् की ध्वनि से नट कलाकारो का उत्साह बढाया। नाटिका का संयोजन ज्योति संचेती व लक्ष्मी बोहरा ने अच्छा किया। 



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