दादा -दादी, नाना- नानी शिविर का आयोजन 

अनुभवों के कोष होते हैं- दादा-दादी, नाना-नानी - मुनि जिनेशकुमारजी

कटक उड़ीसा ; युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेशकुमारजी ठाणा -3 के सान्निध्य में दादा-दादी, नाना-नानी शिविर का आयोजन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा द्वारा किया गया।  जिसमें अच्छी संख्या में शिविरार्थियों ने भाग लिया।
  इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेशकुमारजी ने कहा कि रिश्तों की दुनिया में एक महत्त्वपूर्ण रिश्ता है - दादा-दादी, नाना-नानी का। खट्टे-मीठे अनुभवों का नाम है दादा-दादी, नाना-नानी। वे अनुभवों के कोष होते हैं। वे दुर्गुणों के स्पीड ब्रेकर होते हैं। जिस घर में दादा-दादी होते है, वे घर भाग्यशाली होते हैं। दादा-दादी का वात्सल्य एवं प्यार पोते-पोतियों को प्राप्त होता है। वे उनके निर्माण में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं। कहा जाता है बचपन जापान का अच्छा होता है, जवानी अमेरिका की अच्छी होती है और बुढ़ापा भारत का अच्छा होता है। क्योंकि भारत में बुजुर्गों की सेवा होती है। उन्हें आदर व सम्मान प्राप्त होता है। बदलते परिवेश में भी दादा-दादी व नाना-नानी इज्जत के हकदार है। वृक्ष बूढ़ा हो जाने पर फूल नहीं देता है, किंतु छाया तो देता है। उसी प्रकार दादा-दादी बुजुर्ग होने पर  कार्य से निवृत्त हो जाते हैं, परंतु उनकी छाया रूप संरक्षण परिवार को प्राप्त होता है। उनके बलिदान व प्यार को कभी नहीं भूलना चाहिए।
  मुनि जिनेश कुमार ने आगे कहा कि बुजुर्ग बोझ नहीं सहारा है। दादा-दादी परिवार की रौनक है। दादा-दादी, नाना-नानी स्वस्थ जीवन के लिए आसक्ति को छोडे। प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर प्रस्थान करें। बुरा नहीं सोचे, दूसरे को बदलने की बजाय स्वयं बदल कर देखें। उनका दायित्व है कि  वे परिवार की समस्याओं के समाधान में अपने अनुभवों का उपयोग करें। दादा-दादी परिवार की शान है, उनका सम्मान संस्कृति का सम्मान है।
  मुनि परमानंदजी ने कहा कि एक खूबसूरत रिश्ता है दादा-दादी, नाना-नानी का। वे परिवार में संस्कारों का संपोषण करते हैं। इस अवसर पर मुनि कुणालकुमारजी ने गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथी सभाध्यक्ष मोहनलाल सिंधी ने विचार व्यक्त किये। शिविर में अच्छी संख्या में दादा-दादी व नाना-नानी उपस्थित थे




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