तप से होता अनासक्त चेतना का जागरण : मुनि अर्हत् कुमारजी
गांधीनगर, बंगलुरू 02.11.2022 ; तप से आत्मदीप प्रज्वलित होता है, जिसका सुनहरा प्रकाश जन्म जन्मान्तरों के पाप तम को दूर कर आत्म स्वरूप को उपलब्ध कराता है। तप ही एकमात्र ऐसा अस्त्र है, जिसके द्वारा कर्म रूपी पर्वत को तोड़ा जा सकता है। तप आत्ममल धोने का रसायन है तथा इससे शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से भी छुटकारा मिलता है। तप के द्वारा आत्मानंद प्राप्त किया जा सकता है। तप से आत्मा एवं तन-मन की शुद्धि होती है, तप से आत्मा का सौंदर्य निखरता है एवं भाग्योदय प्रकट होता है। उपरोक्त विचार तेरापंथ सभा, गांधीनगर, बंगलुरू की आयोजना में आयोजित तपोभिनन्दन समारोह में मुनि अर्हत् कुमारजी ने कहें।
मुनि श्री ने आगे कहा कि तप आत्मशक्ति को एक्टिवेट करता है। तप वह मनोहर वाटिका है, जिसमें रमण करने वाले व्यक्ति का जीवन रमणीय बन जाता है। बिंदु रायसोनी ने श्रेणी तप कर एक कीर्तिमान को स्थापित किया है। ऐसे ही तप में आगे बढ़ते हुए आत्मा को भावित करते रहे।
मुनि भरतकुमारजी ने कहा बिन्दु का यह चला तप श्रेणी क्रम।
हो सकता है या नहीं हो सकता है, मिटा भ्रम।
चातुर्मास मे मुनि श्री ने किया श्रम।
तप, जप व प्रवचन से हुआ
सफलतम चातुर्मास कह सकते है हम।।
मुनि श्री जयदीपकुमारजी ने गीत का संगान किया। बिन्दू रायसोनी ने अपनी इस तपस्या को गुरु शक्ति का प्रसाद बताया और परिवार के आत्मिय सहयोग से ही तपस्या की पूर्ति का हेतुक कहा। रायसोनी परिवार एवं महिला मंडल की ओर से अनेक व्यक्तियों ने विचार व्यक्त किए। सभा अध्यक्ष कमलजी दूगड़ ने साध्वी प्रमुखश्रीजी के संदेश का वाचन किया।
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