दीपावली और जैन धर्म

 हर साल कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन दीपावली मनाई जाती है। इस साल 12 नवंबर 2023, रविवार को दिवाली है। यह पर्व एक साथ दुनियाभर में मनाया जाता है। साथ ही सभी धर्मों के लोग भारत में एक साथ दिवाली मनाते हैं। इस दिन घर द्वार को दीपों से जलाया जाता है। दिवाली का शाब्दिक अर्थ दीपों की पंक्ति है। इसके लिए दीपावली के दिन घरों को दीपों से सजाया जाता है। जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी भी दिवाली पर्व मनाते हैं।

आइए, इसके बारे में कुछ जानते हैं-

 जैन धर्म इतिहासकारों की मानें तो जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को कार्तिक कृष्ण अमावस्या को मोक्ष मिला था। साथ ही इस दिन चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को भी ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान महावीर का जन्म 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय परिवार हुआ था। इनका जन्म तीर्थंकर पार्श्वनाथजी के निर्वाण के बाद हुआ था। महज 30 वर्ष की आयु में महावीर ने गृह त्याग कर सन्यास धारण कर लिया था।

इसके बाद 12 वर्षों तक कठिन तपस्या के पश्चात उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। केवलज्ञान उस ज्ञान को कहा जाता है, जिसमें जैन धर्म के अनुसार अनुयायियों को विशुद्धतम ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें चार तरह के कर्मों पर विजय पाना होता है। इनमें मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनवरण तथा अंतराय के कर्मों पर जीतने के बाद ज्ञान होता है। 527 ईशा पूर्व में कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन बिहार के नालंदा जिले स्थित पावापुरी में भगवान महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ था। इसके लिए जैन धर्म के अनुयायी निर्वाण दिवस के रूप में दिवाली मनाते हैं।

2.  पूरे भारतवर्ष में दीपावली का त्यौहार मुख्य रूप से मनाया जाता है। हिंदू धर्म को मानने वाले लोग इस दिन श्रीराम के अयोध्या वापसी की खुशी में इसे प्रति वर्ष मनाते हैं, किंतु इसी के साथ इसका जैन धर्म में भी उतना ही महत्व है। इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था अर्थात उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया था तथा मोक्ष को प्राप्त किया था। 


 जैन धर्म में दिवाली का महत्व -

जैन धर्म में कुल चौबीस तीर्थकर हुए थे। जिन्हें जैन धर्म के भगवान भी माना जाता हैं। इनमे से अंतिम तीर्थकर थे महावीर स्वामीजी, जिनकी विशेष मान्यता हैं। आज से 527 ईसापूर्व महावीर स्वामी ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही अपने शिष्यों को आखिरी उपदेश दिया था जिसे उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से जाना जाता हैं।

इसके पश्चात उन्होंने अपने भौतिक शरीर का त्याग कर दिया था तथा मोक्ष को प्राप्त कर लिया था। महावीर स्वामीजी के द्वारा मृत्यु लोक को छोड़ने पर, देव लोक से देवता अपने विमानों के साथ आये और उनके विमानों में लगे रत्नों से अमावस्या की रात्रि भी पूर्णिमा के समान हो गई, सारा पावापुरी जगमगा उठा। उसी याद में जैन धर्म के लोग दिवाली के दिन आज भी दीपक जलाकर खुशियाँ प्रकट करते हैं।

गणधर गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति

इसी दिन भगवान महावीर स्वामी के मुख्य शिष्य गणधर गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। भगवान महावीर स्वामी ने अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व अपने शिष्य को  ज्ञान दिया था, ताकि उनके जाने के बाद वह लोगो का मार्गदर्शन कर सके।

दिवाली के दिन जैन धर्म के लोग क्या करते हैं?

जैन धर्म के लोग भी हिंदू धर्म के लोगो की भांति दिवाली का त्यौहार मनाते हैं। इसमें मुख्य रूप से घरो व मंदिरों में दीपक जलाना, माता लक्ष्मी की आराधना करना, निर्वाण (लाडू) का प्रसाद बनाना सम्मिलित हैं। जैन धर्म के लोग इस दिन नए वस्त्रों को पहनते हैं व तैयार होकर मंदिर, उपासरा, साधु-साध्वीयों के दर्शनार्थ जाते हैं। वहां जाकर वे भगवान महावीर स्वामी की अर्चना करते हैं। चारित्र आत्माओं के श्रीमुख से महावीर वाणी का रसास्वादन करते हैं। त्याग- प्रत्याख्यान स्वीकरण करते हैं।

इसके अलावा हिंदू धर्म के लोगो की भांति जैन धर्म के व्यापारी भी अपनी दुकान पर बही-खातो की पूजा करते हैं व लक्ष्मी माता से हमेशा स्वयं पर आशीर्वाद बनाए रखने की प्रार्थना करते है। दिल ढ़लते ही सभी अपने घरो व मोहल्लो को दीपक से सजा देते हैं तथा एक दूसरे को बधाई देते हैं।

इस दिन से जैन धर्म में नए संवत्सर की शुरुआत होती है। जैन धर्म में इस दिन को वीर निर्वाणोत्सव के रूप में भी याद किया जाता है।

जैन धर्म में माँ लक्ष्मी व माँ सरस्वती का महत्व -

जैन धर्म में दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी व माँ सरस्वती की पूजा की जाती हैं। इन दोनों माताओं का जैन धर्म में प्रमुख स्थान हैं। क्योंकि लक्ष्मी माता को निर्वाण अर्थात मोक्ष की माता कहा जाता हैं। जबकि माँ सरस्वती को कैवल्यज्ञान अर्थात विद्या की देवी माना जाता हैं।

दिवाली वाले दिन महावीर स्वामीजी को माँ लक्ष्मीजी की प्राप्ति हुई थी, जबकि उनके शिष्य गणधर गौतम स्वामीजी को माँ सरस्वतीजी की। इसलिये इन दोनों देवियों की विशेष रूप से पूजा की जाती हैं, ताकि परिवार में हमेशा विद्या, बुद्धि व वैभव बने रहे।

      @ स्वरूप चन्द दाँती

          चेन्नई / बालोतरा