संस्कार हमारे जीवन की अनमोल संपदा - मुनिश्री जिनेशकुमार
★ एक दिवसीय संस्कार निर्माण शिविर का भव्य आयोजन
पूर्वांचल कोलकाता 08.04.2023 : युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेशकुमारजी ठाणा-3 के सान्निध्य में एक दिवसीय संस्कार निर्माण शिविर बांगुर एवेन्यु स्थित तुलसीधाम तोदी भवन में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, कलकत्ता- पूर्वांचल ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया। शिविर में लगभग 125 बालक- बालिकाओं ने भाग लिया।
■ आचार, विचार, संस्कार, व्यवहार से जीवन बनता सुसंस्कृत
प्रात:कालीन प्रवचन सत्र को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेशकुमारजी ने कहा कि जीवन को सुसंस्कृत करने का महत्वपूर्ण घटक हैं- आचार, विचार, संस्कार, व्यवहार। आचार प्रथम धर्म है। आचार के बिना जीवन पंगु है। चरण की नहीं, आचरण की पूजा करे; चित्र की नहीं, चारित्र की पूजा करे। जिसका आचरण श्रेष्ठ होता है, वह अच्छा इंसान कहलाता है। विचारों में संकीर्णता नहीं, जबकि पवित्रता होनी चाहिए। सकारात्मक विचार से व्यक्ति का आभामंडल पवित्र होता है। सद्गुणों का विकास होता है।
■ बाल पिढ़ी को सुसंस्कारी बनाने की शाला है- ज्ञानशाला
मुनिश्री ने आगे कहा- व्यक्ति की पहचान संस्कार से होती है। संस्कार हमारे जीवन की अनमोल संपदा है। जीवन की थाती है। संस्कार विहीन बालक का जीवन बंजर भूमि जैसा होता है। संस्कार निर्माण की अवस्था बचपन है। बालक देश का कर्णधार है। आज का बालक ही कल का बादशाह हैं। बालको को सद्संस्कारी बनाने से घर में स्वर्ग जैसा वातावरण बनता है। बालकों को संस्कारी बनाने की शाला है ज्ञानशाला। ज्ञानशाला के माध्यम से बालक संस्कारी बन सकते है, अच्छे इंसान बन सकते है।
मुनिश्री ने विशेष रूप से कहा कि शिविर के माध्यम से बालक सहज ही ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि की आराधना कर सकता है।
बाल मुनिश्री कुणालकुमारजी ने सुमधुर गीत का संगान किया। बांगुर ज्ञानशाला के बच्चों ने लघु नाटिका प्रस्तुत की। शिविर मे मुनिश्री जिनेशकुमारजी, मुनिश्री परमानंदजी, उपासक सुरेन्द्र जी सेठिया एवं उपासक मालचंदजी भंसाली ने प्रशिक्षण दिया। शिविर में चित्रकला प्रतियोगिता हुई जिसमें प्रथम स्थान पर निहा जैन दमदम, द्वितीय स्थान राशि भण्डारी लेकटाउन, तुतीय जेनिका गोयल फुलबगान, जुनियर में प्रथम स्थान पिसा तातेड़ फुलबगान रहे। सभा द्वारा उन्हें पुरस्कृत किया गया।
शिविर को सफल बनाने में तेरापंथ सभा के कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। शिविर में ज्ञानशाला की 21 प्रशिक्षिकाओ ने अपनी सेवा दी।
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