भगवान महावीर को ग्रंथों और पंथों में नहीं खोजकर स्वयं में खोजे - मुनिश्री जिनेशकुमार


★ 2622वां भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव हर्षोल्लास पूर्वक मनाया

कोलकाता 03.04.2023 : भगवान महावीर का 2622वॉ जन्म कल्याणक महोत्सव युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेशकुमारजी ठाणा- 3 के सान्निध्य में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, कोलकाता द्वारा महासभा भवन में आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि सी एम बच्छावत (सेवानिवृत्त IAS), विशिष्ट अतिथि महासभा के मुख्यन्यासी सुरेशजी गोयल एवं महासभा के महामंत्री विनोदजी बैद थे।

इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेशकुमारजी ने कहा कि जो दूसरों को जीतता है वह वीर होता है, जो अपने आप को जीतता है, वह महावीर होता है। भगवान महावीर का जीवन दर्शन व साधना अनुत्तर थी। वे अतीन्द्रिय चेतना के धनी थे। वे जैन नहीं, जिन थे। वे व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व थे। उन्हें ग्रंथों और पंथों में नहीं खोजकर स्वयं में खोजें। वे निर्ग्रन्थ थे। वे अप्रतिम ज्ञान व निर्भीक चेतना के धनी थे। भगवान महावीर ज्योतिशिखा थे। उन्होंने ज्योति की साधना की। वे ज्योतित पथ पर चले। उन्होंने ऊर्जा का संचयन कर योग को सम्यग् दिशा में नियोजित किया। उन्होंने प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति को साधा। यही कारण है कि वे इतने उग्र परिषदों और उपसर्गों में धीर बने रहे। भगवान महावीर के जीवन में मातृभक्ति, भातृभक्ति, करुणा, निरभिमानता, सहनशीलता, तप-ध्यान विशेष रूप से दिखाई देता है। 

मुनिश्री ने आगे कहा कि भगवान महावीर का जन्म 2621 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को मध्यरात्रि में क्षत्रिय कुण्डग्राम में हुआ। उन्होंने अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह का सिद्धान्त देकर मानवजाति को उपकृत किया। आज दुनिया भगवान महावीर के सिद्धान्तों को अपनाले तो अनेक वैश्विक समस्याओं का समाधान सहज ही संभव हो सकता है। महावीर जयंती मनाना तभी सार्थक होगा जब हम उनके उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

 मुनिश्री कुणालकुमारजी ने सुमधुर गीत का संगान किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त आईएएस सी एम बच्छावत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान महावीर के अनेकांत सिद्धान्त का जीवन व्यवहार में उपयोग करें, स्वाध्याय करें। जैन धर्म गुण प्रधान धर्म है। थोड़ा सा ध्यान दें तो अनावश्यक हिसा से आसानी से बचा जा सकता है।

विशिष्ट अतिथि महासभा के मुख्यन्यासी सुरेशजी गोयल ने विचार व्यक्त करते हुए कहा भगवान महावीर के तीन सिद्धान्त अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

विशिष्ट अतिथि महासभा के महामंत्री विनोद बैद ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा - ढाई हजार वर्षों के बाद भी भगवान महावीर को देशभर में याद किया जाता है। उनके सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है।

कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल मध्य कोलकाता के मंगल संगान से हुआ। स्वागत भाषण श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, कोलकाता अध्यक्ष अजयजी भंसाली ने दिया। साउथ कोलकाता, साउथ हावड़ा, उत्तर हावड़ा, टॉलीगंज, पूर्वाचल एवं उपनगरीय ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों ने लघु नाटिकाओं के माध्यम से भगवान महावीर जीवन दर्शन प्रसंगों एवं उपदेशों की प्रस्तुति दी। आभार ज्ञापन कोलकाता सभा मंत्री सुरेन्द्रजी नाहटा ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंदजी ने किया। कार्यक्रम में कोलकाता, हावड़ा एवं उपनगरीय सभी सभा क्षेत्रों के श्रावक-श्राविकाएँ की अच्छी संख्या में उपस्थित रही।


झांकी एवं लघुनाटिका प्रस्तुति प्रतियोगिता में 

प्रथम स्थान पर साउथ हावड़ा, 

द्वितीय स्थान पर साउथ कोलकाता, 

तृतीय स्थान पर उत्तर हावड़ा एवं पूर्वांचल ज्ञानशाला,

सांत्वना पुरस्कार के लिए टॉलीगंज एवं उपनगरीय ज्ञानशाला 

को चुना गया। सभी को सभा द्वारा पुरस्कृत किया गया। विजेताओं का चयन सुशील जैन चोरड़िया, संगीता सेखानी, संगीता लुनिया की संयुक्त टीम ने किया। 

कार्यक्रम के पूर्व महावीर जन्म कल्याणक के उपलक्ष में झांकिया एवं भजन मंडलियों के साथ विशाल शोभा यात्रा निकाली गयी। समाज के प्रबुद्धजनो, सभा संस्थाओं के पदाधिकारीगण के साथ साथ बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं की महोत्सव में उपस्थिती रही। कार्यक्रम के संयोजक अशोक लुनिया थे। सभा द्वारा सभी आतिथ्यों का सत्कार किया गया।


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