भक्ताम्बर स्तोत्र में अपार शक्ति : मुनिश्री मोहजीतकुमार
भक्ताम्बर स्वयं से सिद्ध बनने का स्त्रोत : मुनि जयेशकुमार
बालोतरा ; न्यू तेरापंथ भवन, आचार्य महाश्रमण मार्ग में आज 18 दिवसीय भक्ताम्बर कार्यशाला का समापन हुआ।
मुनिश्री मोहजीतकुमारजी ने फरमाया कि जैन धर्म के मुख्य स्तोत्र में भक्ताम्बर का विशिष्ट स्थान है। हमें इसे कंठस्थ कर प्रतिदिन इसका संगान करना चाहिए। मुनिश्री ने भक्ताम्बर के महत्व और इसके विशेष प्रभावों पर भी प्रकाश डाला।
मुनिश्री जयेशकुमारजी ने फरमाया कि सर्वप्रथम हम किसी भी मंत्र या स्तोत्र की साधना करें तो उसके प्रति आस्था का प्रबल भाव हो, मन मे किंचित मात्र भी संदेह ना हो। भक्ताम्बर स्त्रोत में जैन धर्म के प्रणेता प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की स्तवना की गई है। इसकी रचना आचार्य मानतुंग ने की थी। इस स्त्रोत के 48 पद है। सभी पदों का विशेष महत्व है। एक एक पद अपने आप मे एक विशिष्ट मंत्र है। इनका संगान कर हम अपने भीतर के दोषों को दूर करने के साथ बाह्य संकटों और समस्याओं से भी निजात पा सकते है। जिस प्रकार महाभारत का युद्व 18 दिन तक दूसरों को पराजित करने के लिए लड़ा गया, उसी तरह यह 18 दिवसीय कार्यशाला व्यक्ति के भीतर छिपे विकारों को बाहर करने का माध्यम बने। यह कार्यशाला लोग से लोकोत्तर बनने, स्वयं से सिद्ध बनने की पाठशाला थी। हम भगवान आदिनाथ का प्रतिदिन मंगल स्मरण कर उनके गुणों को अपने भीतर आत्मसात करें। कार्यशाला के प्रथम दिन मुनि भव्यकुमारजी ने किस प्रकार से भक्ताम्बर स्तोत्र की रचना हुई, उसका सुन्दर विवेचन किया।
निवर्तमान मंत्री नवीन सालेचा ने बताया कि इस कार्यशाला का सुंदर संचालन प्रतिदिन मुनिश्री जयेशकुमारजी द्वारा किया गया। इस कार्यशाला का मुख्य लक्ष्य भक्ताम्बर स्तोत्र जो संस्कृत में है, उसकी उच्चारण शुद्धि हो और इसका कंठस्थ ज्ञान हो। मुनिश्री ने एक-एक पद का शुद्ध उच्चारण सीखा कर, उसके अर्थ का सुंदर तरीके से वाचन किया। इस कार्यशाला में प्रतिदिन लगभग 45 श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। इस अवसर पर अणुव्रत समिति अध्यक्ष जवेरीलाल सालेचा, पूर्व तेयुप अध्यक्ष राजेश बाफना, निवर्तमान तेयुप अध्यक्ष अरविंद सालेचा, जेटीएन प्रतिनिधि खुशाल ढेलडिय़ा के साथ तेरापंथ समाज के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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