आध्यात्मिक चेतना को जगाना स्वाध्याय है : साध्वी गवेषणाश्री


 माधावरम् 02.09.2024 : स्वाध्याय वह दर्पण है जिसमें अपना रूप देखा जा सकता है, जीवन को निखारा जा सकता है। परमात्मा की प्राप्ति के दो ही रास्ते है- ध्यान और स्वाध्याय। आध्यात्मिक चेतना को जगाना स्वाध्याय है। शिक्षा की अनेक विधाएं विकसित हुई है, किन्तु केवल पुस्तकीय ज्ञान डिग्रीयां दे सकता है स्वयं की पहचान नहीं- उपरोक्त विचार डॉ. साध्वीश्री गवेषणाश्रीजी ने आचार्य महाश्रमण तेरापंथ जैन पब्लिक स्कूल, माधावरम् चेन्नई के प्रांगण में पर्यूषण महापर्व की आराधना में साधनारत साधकों को सम्बोधित करते हुए कहें।   
 भगवान महावीर के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए साध्वीश्रीजी ने वर्धमान, ज्ञानपुत्र, सन्मान, महावीर कैसे बने! का विवेचन करते हुए भगवान के प्रथम सम्यक्त्व भव का विवेचन किया।

 साध्वी श्री मेरुप्रभाजी ने कहा कि स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है- पढ़ना, सम्यग रूप से चिंतन करना। स्वाध्याय से व्यक्ति ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय कर अतिशयी ज्ञान प्राप्त कर लेता है। स्वाध्याय उस पायलट के समान है, जो मोक्ष की यात्रा में सारथी बनता है।
साध्वी श्री मयंकप्रभा जी ने कहा कि जातिस्मृति ज्ञान मोहनीय कर्म के उपशम, अध्यवसाय की विशुद्धि और ईहा, अपोह मार्गणा, गवेषणा से प्राप्त होता है। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी श्री दक्षप्रभाजी ने किया। सुश्री दर्शना, सुश्री अनुकृति छल्लाणी के मंगलाचरण से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। श्री माणकचंद रांका, श्री मनीष मुथा, श्री हरीश भंडारी ने योगासन करवाये। श्री अशोक मुथा ने समाधि मरण विषय प्रस्तुति देते हुए बाल मरण, पंडित मरण, बाल पण्डित आदि पर विस्तार से बताया। श्री राकेश खटेड ने अर्हतवाणी, अर्हत वंदना मे क्या फर्क है तथा क्यों और कैसे करें, पर अभिव्यक्ति दी। श्री सुरेश रांका ने आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी।