माँ के प्रेम में अखण्ड वात्सल्य है : जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी


★ माता-पिता के उपकार से उपकृत बनने का पढ़ाया पाठ

 चेन्नई 23.07.2023 ; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में धर्मपरिषद् को संबोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने माँ के उपकार का विश्लेषण करते हुए बचपन की सैर करवाते हुए कहा कि जिनके हाथ में हम पलै, बड़े हुए, कुछ किया, कुछ कर रहा हूँ। उस व्यक्तित्व का पावन स्मरण करना है, उनके प्रति कृतज्ञता और कर्तव्य का चिन्तन करना है। कृतज्ञता- उपकार का परिणाम है।

◆ माँ के उपकार अनन्त है

 माँ के उपकार अनन्त है, उसके उपकार का कोई लेखा जोखा नहीं हो सकता। जिस समय मुझे जरुर थी, उस समय उन्होंने मुझे अंगुली पकड़कर चलना सिखाया, पढ़ाया, गढ़ाया। हमें उन माता पिता के बुढ़ापे की लाठी बनना चाहिए, सहायक बनना चाहिये। उनके उपकार से कुछ उपकृत होने के लिए गतिशील होना चाहिए। माँ के प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता, उस प्रेम में अखण्ड वात्सल्य है। इसलिए कहा जाता है कि कभी कभी पुत कपुत हो सकता है लेकिन माँ कुमाता नहीं होती। उसके ह्रदय का झरना तो वैसा ही बहता रहता है। कर्तव्य का पालन हम करें या न करे, लेकिन माँ के वात्सल्य का झरना तो बहता ही रहता है।

◆ जन्मदात्री माँ के प्रति कृतज्ञता को नहीं भूलना चाहिए

गुरुवर ने आगे कहा कि जिन्दगी में कुछ भी घटनाएं घट जाएं, कुछ भी हो जाए, साधु बन जाये, लेकिन फिर भी जन्मदात्री माँ के प्रति कृतज्ञता को नहीं भूलना चाहिए। यह माँ है जिनके कारण तीर्थंकरों का जन्म होता है। माँ के उपकारों को देखना हो तो किसी छोटे बच्चे को देख लेना चाहिए। कभी कभी हम बड़े होने के बाद में यह चिन्तन आ जाता है कि अच्छा होता कि हमारा बचपन पुनः आ जायें। हम बड़े हो जाते है और बचपन की बातों को विस्मृत कर हम माता पिता के उपकारों को कभी नहीं भूले। हम माता पिता के कभी सामने नहीं बोले, अवज्ञा नहीं करे। दुनिया में मात्र एक माँ ही जो बच्चों का सही लालन पालन कर सकती हैं।

◆ बच्चों को आया कि नहीं अपितु माँ की जरूरत

वर्तमान की आया परिस्थिति को रेखांकित करते हुए विशेष प्रेरणा देते हुए गुरुवर ने आह्वान भी किया कि जैसे पैसों से भरा बैंग आप किसी दूसरों के भरोसे नहीं छोड़ सकते तो वै माताएं कैसे अपने बच्चों को आयों के भरोसे छोड़ कर जाती है। हमारे सम्बंध पहले पीतल की तरह होते जब भी मिलते चमक आती, फिर स्टील की तरह कुछ आवाज आने लगी, काँच के बर्तन की तरह टुटने लगे और आज कल तो यूज एण्ड थ्रो की तरह हो रहे है। चिन्तन करें, विचार करें। उपकारी माँ अपने आस पास रहे या न रहे, लेकिन उसके प्रति कृतज्ञता, कर्तव्य के भावों को कभी भी नहीं भूले।

◆ वह माँ सबसे परम् उपकारी जो बच्चों के साथ स्वयं भी होती दीक्षित

माँ के रुपों का विश्लेषण करते हुए आचार्यवर ने कहा कि माँ के उपकार कितने कितने है वो माँ भी माँ है जो माँ अपने बच्चे का विवाह करवाती है और अपने घर में बहू लाने का सपना देखती है। वह माँ भी माँ है जो अपनी संतान को धर्म की शिक्षा देती है, स्कूल भेजती है, साथ में अध्यात्म के संस्कार देती है, सुश्रावक बनाती है। वह माँ भी माँ है, परम् उपकारी माँ है, जो अपने लाल को परमात्मा महावीर के शासन के मार्ग पर भेजती है, दीक्षा की अनुमति देती है, अपने कलेजे के टुकड़े को शासन को समर्पित करती है, दीक्षा देती है। वह माँ तो परम् उपकारी है, महा उपकारी है जो बेटे को भी दीक्षा देती है और स्वयं भी दीक्षा ले लेती है।

◆ माँ के निमित्त मैं यहां बैठा हूँ

गुरुवर ने अपने बारें में बताया कि अगर मैं भी यहां बैठा हूँ तो माँ के कारण मेरी दीक्षा हुई तो माँ के कारण। अन्यथा मैं छोटा सा नादान बच्चा क्या समझता था। संस्कार पूर्व जन्म के, प्यार गुरुदेव का, लेकिन उपकार माँ का। माँ के मन में यह झंकार थी कि संसार में कुछ नहीं है, तुम्हें भी दीक्षा लेनी है, मुझे भी दीक्षा ग्रहण करनी है, पूरे परिवार को दीक्षा लेनी है।

◆ अपने हाथों से माता पिता की करें सेवा

बिमार माता पिता को रुपये पैसों से ज्यादा उनके बच्चों की जरुरत होती है, उनका सहवास जरूरी होता हैं। उपकारी माता पिता के स्वास्थ्य की सेवा अपने हाथों से करनी चाहिए।

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