सुखी परिवार, सुखी जीवन का आधार - मुनि सुधाकर
★ बच्चों में संस्कार निर्माण पर विशेष ध्यान देने की दी प्रेरणा
मंगलूर 12.03.2023 : आचार्य श्री महाश्रमणजी के शिष्य मुनि श्री सुधाकरजी के पावन सान्निध्य में मंगलूर स्थित जैन भवन में "सुखी परिवार - सुखी जीवन" विषय पर कार्यशाला का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
कार्यशाला में मुनिश्री ने कहा कि परिवार में स्त्री और पुरुष दोनों ही एक रथ के दो पहिए हैं। जिस तरह बिना दोनों पहियों के गाड़ी नहीं चल सकती। उसी तरह परिवार में स्त्री और पुरुष दोनों के पारस्परिक सहयोग के बिना परिवार का वातावरण भी सुखद नहीं हो सकता। सुखी परिवार से सुखी जीवन का निर्माण होता है। सुखी परिवार, सुखी जीवन का आधार होता है। परिवार की सुख, शांति और प्रगति में दोनों का योगदान समान भाव से होना जरूरी है। सुखी परिवारों से ही समाज भी सुखी होगा। महिलाओं में हीनता और भिरूता की ग्रंथियों से मुक्त होना होगा, तभी वे अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभा पाएंगी।
माताएँ बच्चों में संस्कार निर्माण की ओर दे विशेष ध्यान
मुनिश्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि आज माताओं की जिम्मेदारियां पहले से कहीं अधिक ज्यादा बढ़ गई है। बच्चे कच्चे घड़े के समान होते है। उन्हें जैसा बनाया जाएगा, वे वैसा ही बनेंगे। आधुनिक संसाधनों से बच्चों में जो कुसंस्कार बढ़ रहे हैं, उन्हें दूर करने की जिम्मेदारी महिलाओं पर विशेष रूप से है। इसलिए नारी समाज को बच्चों में संस्कार निर्माण की ओर विशेष ध्यान देना होगा। उन्हें बच्चों से निरंतर संवाद रखते हुए उनकी सहज जिज्ञासाओं का सही समाधान करना होगा।
सौंदर्य प्रसाधन से रहे दूर
मुनिश्री ने आगे कहा परिवार का वातावरण शांत और आनंदमय होना चाहिए। जो लोग स्वार्थी और अधिकारों से ऊपर उठकर परिवार की सुख, शांति और एकता के लिए त्याग करते हैं, वे सच्चे अर्थ में महान हैं और समाज के आदर्श हैं। परिवार में भौतिक चकाचौंध के बजाय आध्यात्मिक वातावरण के सृजन पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिये। जिनका मन शांत और प्रसन्न होता है, वे अपने दायित्व को ज्यादा कुशलता से निभा सकते हैं। हमारी महिलाओं को भौतिक श्रृंगार प्रसाधनों के बजाए अपने आपको सदगुणों से सजाना चाहिए। इससे वे जहां एक और अनचाही हिंसा के पाप से बचेगी, वहीं उनमें आध्यात्मिक शक्ति की प्रखरता भी आएगी। कौन नहीं जानता कि आज के तमाम सौंदर्य प्रसाधन निरपराध जीवो की हत्या करके बनाए जाते हैं।
मंगलाचरण अजीत बेंगाणी, धर्मेश भंसाली, मनीष दुगड़ ने किया। तेजकरण सिपाणी ने सीमंधर भगवान ढाल प्रस्तुत की। अलका बेद, नीलम भंसाली, लक्ष्मीपत नाहटा, चंदनमल भटेवरा सिमोगा ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर श्रावक समाज की उपस्थिति रही।
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