आत्म साक्षात्कार की प्रक्रिया है- प्रेक्षाध्यान : मुनिश्री जिनेशकुमार
★ प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन
हिन्दमोटर (कोलकाता) 19.03.2023 : युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेशकुमारजी ठाणा - 3 के सान्निध्य में प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन जी टी रोड़ स्थित फणिन्द्र भवन में प्रेक्षावाहिनी हावड़ा- सबर्बन एवं श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, हिन्दमोटर द्वारा किया गया।
◆ आत्मसाधना में ध्यान का महत्त्वपूर्ण स्थान
इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेशकुमारजी ने कहा- जिस प्रकार शरीर में मस्तक का तथा वृक्ष में उसकी जड़ का महत्वपूर्ण स्थान है। उसी प्रकार आत्मसाधना में ध्यान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ध्यान ज्योति का मार्ग है, प्रकाश का मार्ग है। ध्यान निवृत्ति का सर्वोत्तम उपाय है। ध्यान में एक ध्यान है- प्रेक्षाध्यान। प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति का शुभारम्भ आचार्य श्री तुलसी की सन्निधि में आचार्य श्री महाप्रज्ञजी द्वारा हुआ। ध्यान के द्वारा हम अपने दोषों को देख सकते है, अपने आवेगों व संवेगों को नियंत्रित कर सकते है। ध्यान और स्वाध्याय के द्वारा आत्मा से परमात्मा को प्रकाशित कर सकते है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि प्रत्येक मनुष्य अच्छा जीवन जीना चाहता है। अच्छा जीवन जीने के लिए स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन, स्वस्थ भाव, बौद्धिक क्षमता तथा कार्य कौशल आदि तत्त्व कार्यक्षमता तथा उपयोगी सिद्ध होते है। ध्यान साधना में आहार की उपयोगिता असंदिग्ध है। संतुलित, परिमित, हितकारी, आहार- साधना और स्वास्थ्य दोनों के लिए श्रेयस्कर है। मन हमेशा शांत रहे। नकारात्मक भाव से बचे। बुद्धि का सद्उपयोग करना चाहिए। कार्यक्षमता से जीवन श्रेष्ठ होता है।
◆ आत्मा में रमण करना ही ध्यान है
मुनिश्री ने आगे कहा कि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, अपने आप में रहना। आत्मा में रमण करना ही ध्यान है। ध्यान के द्वारा आत्म साक्षात्कार कर सकते हैं।
कार्यशाला में मुनिश्री कुणालकुमारजी ने सुमधुर गीत व प्रेक्षावाहिनी के सदस्यों ने प्रेक्षागीत का संगान किया। स्वागत भाषण श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष मनोजजी कुंडलिया ने दिया। मंगलभावना मुनिश्री ने करवाई। गणपतिबाई दुगड़ ने योगिक क्रियाएं, व्यक्तव्य संजयजी पारख, कायोत्सर्ग इंदू दुगड़, प्रेक्षाध्यान पर व्यक्तव्य प्रेमबाई चौरड़िया ने, ध्यान रविजी छाजेड़, आभार ज्ञापन सभा मंत्री धनराजजी सुराणा ने व संचालन मुनिश्री परमानंदजी व अरुणजी नाहटा ने किया। प्रेक्षाध्यान कार्यशाला में 66 साधको ने हिस्सा लिया।
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