गर्भवती माँ को गर्भ के समय धर्म ध्यान में रहना चाहिए - जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी
◆ माता पिता की सेवा सुक्ष्मना में योगभूत बनने की दी प्रेरणा
◆ चौवदह महास्वप्नों का सुन्दर वर्णन करते हुए, स्वप्नों की बताई महत्ता
17.08.2023 ; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में पर्यूषण महापर्व के पाँचवें दिन धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि तीर्थंकर बनने के लिए साधना के साथ भावना का भी होना जरूरी है। जैसे भगवान महावीर ने अपने पूर्व नदन के भव मासक्षमण- मासक्षमण की तपस्या के साथ, बीस स्थान गुणों की आराधना करते करते, निच्छल, पवित्र भाव धारा से उन्होंने तीर्थंकर गौत्र का बंधन किया। हमारे मन में, समाज में, गांव में एकता का भाव होना चाहिए। जो टंटा मुक्त होता है, वह विकास करता है।
◆ हमारे कारणों से माता पिता की आँखों में आंसू नहीं आये
गुरुवर ने भगवान महावीर के माता की गर्भ में आते समय त्रिशला माता द्वारा देखे चौवदह स्वप्नों का उल्लेख करते, विशेषता बताते हुए बताया कि कौन सा स्वप्न क्या संदेश देता है। स्वप्नों की श्रृंखला के आधार पर महावीर ने भी यथायोग्य छहों कायों के जीवों की हिंसा से मुक्त रहने का संकल्प लिया। माता को पीड़ा न पहुंचे, उसी लक्ष्य से तीन ज्ञान के धनी महावीर ने गर्भ में हिलन डुलन बंध किया। लेकिन माता चिन्तित हो गई और महावीर ने पुनः हिलन डुलन किया। भगवान महावीर के इस आचरण से संसार के सभी व्यक्तियों को यह संदेश देता है कि कभी भी, किसी भी परिस्थिति में माता पिता से दूर नहीं होना चाहिए, उनकी सेवा सुक्ष्मना करनी चाहिए। हमारे अव्यवहारिक कारणों से माता पिता की आँखों में आंसू नहीं आने चाहिए। हमारे पास कितनी भी धन सम्पदा है, बड़े पैकेज हो, अगर हमारे कारण माता पिता की आँखों में आंसू है तो वह सब जीरों है। संतान को संस्कारी बनाने के लिए गर्भवती महिला को गर्भ के समय धर्म ध्यान में रहना चाहिए। अभिमन्यु ने भी अपने माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह के अन्दर घुसना सिखा था। माता त्रिशला भी गर्भ समय में आत्म ध्यान में रही। प्रवचन समय में चौवदह स्वप्न के चढ़ावें, बोले गये, सभी का बहुमान हुआ।
परम् मंगल ओजस्वी वाणी में गच्छाधिपति ने जैसे ही परमात्मा महावीर का जन्म वाचन का समुच्चारण किया, सारा गौतम किरण परिसर आनन्दित हो गया, प्रफुल्लित हो गया। अन्त में भगवान को आरती द्वारा वर्धापित किया गया।
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