परमात्म प्रार्थना से मिलती शुद्धि, आत्मिक शांति : आचार्य जिनमणिप्रभसूरीश्वर 

चेन्नई 05.07.2023 : श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में धर्मपरिषद् को संबोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि द्रव्य मंगल का जितना महत्व है, उससे कई ज्यादा भाव मंगल का महत्व है। परमात्म भक्ति, प्रभु स्मरण, स्तुति का महत्व है। परमात्मा की भक्ति से समृद्धि, सामर्थ्य और शुद्धि (स्वभाव और स्व) तीनों मिलती है। इन तीनों में समृद्धि स्पष्ट नजर आती है, सामर्थ्य भी नजर आ सकता है, लेकिन शुद्धि नजर नहीं आती, पर उसका अधिक महत्व है। शुद्धि से व्यक्ति के भीतर क्षमाशीलता बढ़ती है, आसक्ति कम होती है, ममत्व में जागरूकता आती है, स्वदर्शन का बोध होता है। स्वभाव की शुद्धि, आत्मा की शुद्धि, कर्मों की शुद्धि, चेतना की शुद्धि, भाषा की शुद्धि होती है।

प्रभु से याचना नहीं अपितु करे प्रार्थना
आचार्य भगवंत ने कहा कि परमात्मा ने जो छोड़ा वो मांगना याचना है और परमात्मा ने जो पाया वह मांगना प्रार्थना है। जो परमात्मा ने छोड़ा उसे पाने की इच्छा से आत्मिक शांति नहीं मिल सकती और परमात्मा ने पाया उसकी कामना करना, चाहने वाला परम् सुख, परम् शांति को पा सकता है, स्वयं आत्मा से परमात्मा बन सकता है। अर्हनक श्रावक अपनी श्रद्धा से अड़िग रहा, अपने वीतराग की आराधना करता हुआ अपने आराध्य की आराधना में तल्लीन रहा। जो दु:ख या सुख, अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों में श्रद्धा के साथ परमात्म भक्ति में लीन रहता है, वह सदैव सफल रहता है। उदय में आने पर पुण्य या पाप दोनों अपने अपने फल देते हैं।
आचार्य भगवंत ने विशेष रूप से कहा कि पुण्यवानी की पहचान हो सकती है लेकिन गुणवानी की सामान्य पहचान नहीं होती। सामान्यतया नमस्कार करना मुश्किल है। प्रभु को, गुरु को नमस्कार करना सरल है। गुणवान को नमस्कार और मुश्किल है और गुणवान होने के लिए नमस्कार करना सबसे मुश्किल है। मैं भी ऐसा गुणवान बनु, इस भावना से नमस्कार करना चाहिए, जो ऐसे भाव रखता है, वही आगे बढ़ता है। अगर इस जन्म में गुणवत्ता को प्राप्त किया है, प्रमाद- आलस्य में जीवन नहीं बिताया, तो हमें पुनः मनुष्य जन्म मिल सकता है।

नमस्कार करने के पिछे हो शुद्ध बनने की भावना

गुरुवर ने प्रतिबोध देते हुए कहा कि नमस्कार करने के पिछे यही भावना होनी चाहिए कि समृद्धि, सामर्थ्य मिले या न मिले लेकिन शुद्धि जरूर मिले। मेरी अन्तर आत्मा शुद्ध बने, मेरा विवेक शुद्ध बने, मैं कभी उलझू नहीं, व्यर्थ की बातों, व्यर्थ के कषायों मैं नहीं उलझू। विषय वासना में नहीं उलझू। क्रमशः मैं आपके जैसा बनूं। यही प्रार्थना हमारी प्रभु से रहनी चाहिए।

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