जैनशासन के महान सूर्योदय का दिन- ऋषभ दीक्षा कल्याणक : साध्वी डॉ मंगलप्रज्ञा
ज्ञानबाग, हैदराबाद : श्रीमान नन्दलालजी बैद के निवास स्थान पर साध्वी श्री डॉ मंगलप्रज्ञा के सान्निध्य में भगवान ऋषभदेव का दीक्षा कल्याणक उल्लासमय वातावरण में मनाया गया।
इस अवसर पर साध्वीश्री ने कहा कि साधना के लिए प्रसन्नता आवश्यक है। बाह्य प्रसन्नता स्थायी नहीं होती। शाश्वत आनन्द के लिए आत्मा के निकट रहना आवश्यक है। अशान्त और असंतुलित मन दुःख पैदा करता है। भगवान महावीर की जय बोलना सरल है, पर उनके उपदेश और दर्शन को जीना मुश्किल है। महावीर-दर्शन को जीवन में उतारने का प्रयास होना चाहिए। अध्यात्म और धर्म की आराधना करने वाला विकट परिस्थितियों में भी रास्ता खोज लेता।
साध्वीश्री ने कहा- दु:ख को परकृत न मानें, जिन्दगी में सुखी बनने के लिए परिस्थिति को बदल लीजिए। यदि परिस्थिति न बदल सकें, तो मनःस्थिति को बदल, आप दुःख से बच जाएंगे। सुखी रहनी के लिए प्रलम्ब साधना है- संयम का जीवन। भगवान ने इस अवसर्पिणी काल में अध्यात्म का मार्ग दिखाया। संन्यास जीवन स्वीकृत किया। तेरह महिनें और 10 दिनों की यह प्रलम्ब सहज साधना की, वह दिन ऐतिहासिक बन गया। उन्होंने कहा कि आनन्दमय जीवन के लिए तप का मार्ग भी स्वीकार किया जा सकता है। अपनी शक्ति को तप साधना में नियोजित करें।
साध्वीश्रीजी ने युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी के दीक्षा संयम "अमृत महोत्सव" के अवसर पर परिषद् को वर्षीतप करने की प्रेरणा दी। प्रेरणा से प्रेरित होकर श्रीमान् माणकचंदजी रांका एवं श्रीमती ललिता चतुर्भूया ने अग्रिम वर्षीतय करने का प्रत्याख्यान किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में साध्वीश्री द्वारा आदिनाथ की आराधना में जपानुष्ठान करवाया गया, वातावरण जपमय बन गया। श्रीमान जगत् पारख ने "मंगलमय त्यौहार मनाएं" गीत का संगान कर श्रद्धा व्यक्त की । साध्वी सुदर्शनप्रभा एवं साध्वी शौर्यप्रभा ने आत्मभाव प्रकट किए।
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